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________________ १७. जेम पारसमणिना स्पर्शथी लोढुं सुवर्ण थइ जाय छे तेम गिरनारना स्पर्शथी प्राणी चिन्मय स्वरूपी बनी जाय छे. ||१८. गिरनारनी भक्ति करनारने आ भवमां के परभवमा दारिद्र्य आवतुं नथी. |१९. गिरनार महातीर्थमां निवास करतां तिर्यंचो (जनावरो) पण . __ आठभवनी अंदर सिद्धिपदने पामे छे. २०. गिरनार महातीर्थ ए पुण्यनो ढगलो छे. २१. गिरनार महातीर्थ ए पृथ्वीना तिलक समान छे. २२. अनेक विद्याधरो, देवताओ, किन्नरो, अप्सराओ अने यक्षो पोतपोतानी इष्टसिद्धिने प्राप्त करवानी इच्छाथी गिरनारमां निवास करे छे. ||२३. गिरनार गिरिवरना पवननो पवित्र आहार करता अने विषममार्गे चालता एवा योगीओ अहँ पदनी उपासना करता गुफाओमां साधना करतां होय छे. ||२४. गिरनार महातीर्थनी सेवाथी केटलाय पुण्यात्माओ आ लोकमां सर्वसंपत्ति अने परलोकमां परमपदने पामे छे. २५. गिरनार महातीर्थनी सेवाथी पापी जीवो पण सर्वकर्मनो क्षय करी अव्यक्त अने अक्षय एवा शिवपदने पामे छे. ||२६. सर्वतीर्थोमां उत्तम अने सर्वतीर्थनी यात्राना फळने आपनार आ गिरनार महातीर्थना दर्शन अने स्पर्शनमात्रथी सर्वपापो हणाइ जाय छे. २७. गिरनार महातीर्थनी भक्ति द्वारा महापापना करनारा अने महादुष्ट एवा कुष्टादिक रोगवाळा जीवो पण सर्वसुखनां भाजन थाय छे. -
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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