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२३) देखो माइ ! अजब
(राग - जिन तेरे चरण की शरण ... )
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देखो माइ ! अजब रूप जिनजी को ....
इनके आगे और सब को, रूप लागे मोंहे फिको... देखो...
नयन करूणा अमृत कचोले, मुख सोहे अति निको... देखो.... कवि जशविजय कहे ए नेमजी, प्रभु त्रिभुवन टीको... देखो....
(२४) महेर करो मनमोहन
(राग - निरख्यो नेमि जिणंदने... )
महेर करो मनमोहन दुःखवारणजी, आवो आणे गेह चित्तठारणजी; रोष न कीजे राजीया दुःखवारणजी, आणो हइडे नेह चित्तठारणजी... १ काल जशे कहाणी चहेरो दुःखवारणजी, जग विस्तरशे वात चित्तठारणजी; कोइ मुजने नरती कहशें दुःखवारणजी, कोइ वली तुम्हने कुभात चित्तठारणजी... २ पहिलि वात विमासीये दुःखवारणजी, तो न होय उपहास चित्तठारणजी; जो होयें घर आपणो दुःखवारणजी, तोहिज दीजें आश चित्तठारणजी...३ विण तरूअर वनवेलीने दुःखवारणजी, कुण राखे ? निज छांहि चित्तठारणजी; कंत विना तेम नारीने दुःखवारणजी, कुण अवलंबे ? बांहि चित्तठारणजी...४ नेह नथी मुज कारमो दुःख वारणजी, निश्वे जाणो नाथ चित्तठारणजी; देह तणी जिमछांहडी दुःखवारणजी, नहीं छांडु तिम साथ चित्तठारणजी...५ दुःखीयाना दुःख टाळवा दुःखवाराणजी, शुं शुं न करे संत ? चित्तठारणजी; तो मुज आप उत्तम थइ दुःखवारणजी, कां उवेखो कंत चित्तठारणजी... ६ इम कहती राजिमती दुःखवारणजी, पोहती गढ गिरनार चित्तठारणजी; विनय कहे जइ मुगतिमां दुःखवारणजी, भेट्यो निज भरतार चित्तठारणजी...७
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