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अहंकारनो अग्नि झरतो, जेमां आतम पल पल बळतो, अर्हम् तणी आराधना तुं आप मारा स्वामी,
मने अरिहंत थवाना घणा ओरता...
गुरुमा तेरे...
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(राग : संसार है अक नदिया, यह है पावन भूमि) गुरुमा तेरे आंसुके, दो बूंद जो मिल जाओ, यह बुंद को पाकर के, ये जीवन बदल जाओ... अक भटके राही को, तुने राह बताया है, कीचड में पडे फूलको, मस्तक पे चडाया है...
अज्ञानके बिस्तरसे, मुझे तुजने उठाया है,
उपशमके आसन पे, अब तुजने बिठाया है... दुर्गतिके दुखोमें, मुझे गिरते बचाया है, दुर्लभ मानवभव को, अब सफल बनाया है...
नजरों के अमृत शे, प्रक्षालन कर देना,
ये दोष भरे चित्तको, तुम निर्मल कर देना... तेरी अमृत वाणीने, संसार छूडाया है, महावीर के मारग में, मुझे संत बनाया है...
तेरे वत्सलरसो से, मेरे विषय सफा करना,
तेरे कृपाभरे जल से, मेरे कषाय दफा करना... दिन दिनकी जुदाई ये, मुझे सालसी लगती है, पलपल तेरी यादोंसे मेरी आंख ऊभरती है...
अब अक अभिलाषा, जब आखिर दम मेरा,
तेरे पावन आंचलमें, तब मस्तक हो मेरा... आंखो की अग्निसे, सब कर्म जला देना, ये हेम से आतम को, अब शुद्ध बना देना...
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