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अमलगिरि भव्यरुपी कमळ खीले, ज्ञानोद्योतगिरि तेज; गुणश्रेणी प्रकाशमां, पामी सिद्धिनी सेज. . गुणनिधि गुणनिधि ओ गिरि थयो, अनंत जिननो ज्यां; प्रगट्यो निज स्वरुपनो, अकल अमल गुण त्यां.. स्वयंप्रभगिरि स्वयंप्रभा खीली रही, जेनी अनादि अनंत; तेह गिरिने वंदता, दोष टळे अनंत. अपूर्वगिरि
.. ओ गिरनारने भेटतां, अपूरव उल्लसे देह;
करमदल चरण करी, पामे भविसुख तेह. |४१ पूर्णानंदगिरि
आनंद पूरण जेहना, फरसे ध्याने जेह; पूर्णानंदगिरि तेहनु, नाम थयुं जगतेह. अनुपमगिरि वानरीमुख नृपअंगजा, इणगिरि झरणपसाय; . अनुपम मुखकमल लही, पामे शिव सुखसदाय. प्रभंजनगिरि प्रभंजनगिरि अहथी, पाप प्रणाशन थाय; पुण्यपूंज करी अकठो, सुखपामे वरदाय. प्रभवगिरि प्रभवगिरिना प्रभावथी, तिणे शिवपाम्या अनंत; पामे छे ने पामशे, लब्धि लही अनंत. अक्षयगिरि हिम सम शीतळता हुवे, करे जीव समतापान; आतम सत्ता प्रगट करी, अक्षयपद विसराम.
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