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________________ ४८ ४६ रत्नगिरि रत्नबलाह गुफामंही, रत्नपडिया शोभंत; देव सहाये दरिसण, निकट भवि लहंत. ४७ प्रमोदगिरि प्रमोद लहे गिरि दर्शने, पूर्णता स्पर्शे पमाय; गढ गिरनारनी सहजता,जेह सदा सुखदाय. प्रशांतगिरि प्रकर्षथी करे शांत देह, कर्म वंटोळ अतीत; प्रशांत गिरिवर तेह छे, वंदु तेहने सदैव. पद्मगिरि पद्मतणी परे जिहां सदा, प्रसरे गुण सुवास; तेह आपे भविं जीवने, मुक्ति सुख आवास. ५०. सिद्धशेखरगिरि सिद्धो थकी शेखर थयो, अन्य गिरिमां तेह; अनन्त जिन निवासथी, पाम्यो मुक्तिरुपे जेह. ||५१ चंद्रगिरि चंद्रसम शीतळपणुं, आपे जीवने जेह; पाप संताप टळे इहां, सुख पामे ससनेह.. सूरजगिरि सूरज सम प्रतपे बहु, सर्व गिरिमां तेह; . तेहथी सूरजगिरि का, नाम अनुपम जेह. ५३ इन्द्रपर्वतगिरि देवोतणा परिवारमां, शोभे इन्द्र महाराय; तिम गिरिमाळ मांहे, शोभे तीरथराय. आत्मानंदगिरि । आत्म आनंद जिहां लहे, अनुभवे निरमल सुख; काल अनादिना टळे, मिथ्या मतिना दुःख. 306
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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