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________________ आजे लहुं शरण चार हुं चित्तमांहे, . जेथी रहुं भवोभव चरणोनी मांहे; जोजे पहुं नहि कदि संसार झाळ, . हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ... - धरी देह श्यामल रूपे दीक्षा ग्रहीने, केवल लमु शुक्ल ध्यानमां थे रहीने; याचुं सदा दरिशन महीं जाय काळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ... जंगम अने तीरथ स्थावर जेह फरतां, गिरनार तीरथ जइ सवि कर्म हरतां; चोवीश जिन लहेशे शिव भावि काळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ..... ....१२ निगोदथी भटकता हुं रह्यो अनाथ, शासन ताहरूं लही हुं थयो सनाथ; मृत्यु समाधि देइ नाथ मरण टाळ, हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ... ....१३ विध विध तर्क करतां जीव जेह मळतां, द्यो शक्ति जेथी मुज पास सुशांति रळतां; स्थिरता लही गति करे तेह मोक्ष ढाळ, . हे नेमिनाथ जिनराज सुणो दयाळ... ...१४
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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