________________
(4) नेमि जिनेसर नियमथी, नमता नव निधि, सकल पदारथ पूरवे, सेव्यो दीए सिद्धि. १ निरागीमां लीह दीह, रयणी दिल मोरे, रसीओ मन अली माहरो पदकमले तोरे २ तुं त्राता त्रिभुवन घणी, निज सेवक संभाण, राम विजय जिन नामथी, लहीए सुख रसाळ,
>
(६)
प्रचार;
समुद्र विजय कुल चंद, नंद शिवादेवी जाया; जादव वंश नभोमणि, शौरिपुर ठाया (१) बालथकी ब्रह्मचर्यघर, गत मारने भक्ति निज आत्मिक गुण, त्यागी संसार (२) निष्कारण जगजीवनो ए, आशानो विश्राम; दीन दयाल शिरोमणी, पूरण सुरतरु काम पशु पोकार सुणी करी, छांडी गृहवास; तत्क्षण संजम आदरी, करी कर्मनो नाश (४) केवल श्री पामी करी ए, पहोंच्या मुक्ति मोझार; जन्म मरण भय टाळवा, ज्ञान सदा सुखकार (५)
(३)
...
૧૦૨
...
...
...
(७). जयवंत महंत निरंजन छो, भवनां दुःख दोहग भंजन छो; भविनेत्र विकासज अंजन छो, प्रभु काम विकार विगंजन छो. (१) जगनाथ अनाथ सनाथ करो, मम पाप अमाप समूल हरो; अरजी उर नेमि जिणंद धरो, तुम सेवक छं प्रभु ना विसरो. (२) अर्चित वांछित दायक छो, सहु संघतणा प्रभु नायक छो; गिरनार तणा गुण गायक छो, कलहंसतणी गति लायक छो. (३)
सुर