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साथ गिरनारनो हाथ...
( राग : ऋषभ जिनराज मुज... ) ( जागने जादवा... ) साथ गिरनारनो हाथ नेमनाथनो, होय जो मस्तके तो शो तोटो;
11211 अन्य स्थाने रही ध्यावे रैवतगिरि, चोथे भव पामतो मोक्ष मोटो... मात तात घातकी पातकी अति घणो, राय भीमसेन गिरनार आवे, ॥२॥
मुनि बनी मौनधरी अष्टदिन तप तपी, उज्जयंतगिरिओ मुगति पावे... वस्तुपाल तेजपाल मंत्री साजनने, धार, पेथड श्रावक भीमो;
तीर्थभक्ति करी तन मन धन थकी, मनुज अवतार तस सफल कीनो ...॥३॥ छाया पण पक्षीनी आवी पडे गिरिवरे, भ्रमण दुर्गति तणा नाश थावे;
जल थल खेचरा इण गिरि पर रही, त्रीजे भव मोक्ष मोझार जावे ...॥ ४ ॥ | व्यक्त चेतन रहित पृथ्वी अप् तेजसा, वायु पादप गिरनार पामी;
तीर्थ महिमा थकी कर्म हळवा करी, सवि थया तेहथी मुगति गामी...॥५॥ 'रत्न', 'प्रमोद', 'प्रशांत', 'पद्मगिरि', 'सिद्धशेखर' भवि पाप जावे;
'चंद्र- सूरज गिरि', 'इन्द्रपर्वतगिरि', 'आत्मानंद' गिरिवर कहावे...॥ ६ ॥ कथीर कांचन हूवे पारसना योगथी, हेम परे शुद्ध निज गुण पांवे;
तिम रैवतगिरि योगथी आतमा, पदवी वल्लभ लही मोक्ष जावे... ॥७॥
मेरो
प्रभु...
( राग : मेरो प्रभु पारसनाथ आधार )
मेरो प्रभु, नेम तुं प्राण आधार,
विसरूं जो प्रभु ओक घडी तो, प्राण रहे ना हमार. भोग त्यजीने जोग लेवाने, नीकळ्या नेमकुमार,
गढ गिरनारने घाटे वसिया, ब्रह्मचारी शिरदार. तुज तीरथनी भक्ति करतां, थाय हरि ओक तार;
पद तीर्थंकर करे निकाचित, अकल तुज उपगार.
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