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________________ में अणसारे ओळख्या रे, कांई राजीमतीनो भरथार रे... आव्या दर्शन करवा.... शरद पूनमनी शोभा घणी रे, कांई चांदनी खीली भली भात रे... आव्या दर्शन करवा... सोना समु देरासर भलु ने, कांई रुपासमी तेनी कोर रे... आव्या दर्शन करवा... मिथ्या तामस दूर थयुं रे, दरशने समकित प्रकाश रे... आव्या दर्शन करवा... भव भ्रमणना फेरा टळ्या रे, दीठा आज नेमिनाथ रे... आव्यां दर्शन करवा... वरसे भले वादळी... वरसे भले वादळी ने वायु भले वाय, दादा तारो दीवडो कदि न बुझाय, आवे भले ने आंधी तोफानो, भले ने झंझावात झींकाय दरियामां उछळे मोजां तोफानी, पर्वत शिलाओ गबडी जाय. ओने बुझववा आवे असुरो, अ पण हारीने चाल्या जाय. | आवे भलेने राहु ने केतु, ओनो प्रभाव पण पाणी पाणी थाय अलबेला नेमिनाथ डुंगरे बिराजे, यात्रा करवाने सहु दोडी दोडी जाय दादा थाळ भरी चोखाने... थाळ भरी चोखाने... घीनो छे दीवडो, श्रीफळनी जोड लईने, हालो... हालो गिरनार जईओ रे . ૧૯૮ ... वरसे भले दादा दादा
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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