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३६. गिरनार महातीर्थमां जे उपवास, छठ, अठ्ठम आदि तप करे छे ते
सर्वसुखोने भोगवी परमपदने अवश्य पामे छे. ||३७. जे जीवो गिरनार महातीर्थ उपर आवी भावथी,जिनप्रतिमानी
पूजा करे छे ते शीघ्र शिवसुखने प्राप्त करे छे. घेरबेठा पण शुद्ध
भावपूर्वक गिरनारनुं ध्यान धरनार चोथाभवे मोक्षपदने पामे छे. ३८. गिरनार गिरिवरना पवित्र शिखरो, सरिताओ, झरणांओ, धातुओ
अने वृक्षो सर्व प्राणीओने सुख आपनारा थाय छे. ३९. गिरनार गिरिवर उपर श्री नेमिनाथ भगवाननी प्रतिष्ठा अवसरे
प्रभुजीना स्नात्राभिषेक माटे त्रणेयं जगतनी नदीओ विशाळ एवा गजेन्द्रपदकुंडमां उतरी आवी हती. गिरनार गिरिवरमां मोक्षलक्ष्मीना मुखरूपे रहेला गजेन्द्रपद (गजपद) नामना कुंडना पवित्रजलना स्पर्शमात्रथी जीवोना अनेक भवना
पापो नाश पामे छे. ४१. गिरनार गिरिवरना गजपदकुंडना जलथी स्नान करीने जेणे जिनेश्वर
परमात्माने स्नान (प्रक्षाल) करावेल छे, तेणे कर्ममलवडे लेपायेला
पोताना आत्माने पवित्र कर्यो छे. ४२. गिरनार गिरिवरना गजपदकुंडना जलनुं पान करवाथी काम, श्वास,
अरूचि, ग्लानि, प्रसुति अने उदरमा उत्पन्न थयेला बाह्यरोगो
पण अंतरना कर्ममलनी जेम नाश पामे छे. |४३. जगतमां कोइपण शाश्वती दिव्य औषधीओ, स्वर्णादि सिद्धिओ
अने रसकूपिकाओ नथी के जे आ गिरनार गिरिवर उपर न होय. ४४. आकाशमा उडतां पक्षीओनी छाया पण जो आ गिरनार महातीर्थनो
स्पर्श पामे तो तेओनी पण दुर्गतिनो नाश थाय छे.