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________________ अनुकूळतामां खुश थातो, प्रतिकूळता गमती नहीं, दिनरात जाता एम मारा, रतिने अरति मही; जे पापस्थानक पंदरमुं, ते दूर करवा विचारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो.... ....१० - ज्यां त्यां फलं जे ते मले, पण वात हुं मारी करूं, कथनी बीजानी टाळतो, फरियाद हुं मारी करूं; बीजो कषाय गाळवा, मुज मन महीं पधारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो... ...११ वीशे विचरता विहरमानो, भक्ति करवा कोड छ । तुं सहाय कर जो मुजने, तो ताहरे शी खोड छे; कर कृपा जेथी लहुं हुं, सुर लोक मां अवतार जो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो... ...१२ समणह कोडि सहस्स दुअ, विचरता जिनवर जिहां, . वैक्रिय रूप करी भक्ति करवा, पहोंचतो निशदिन तिहा, ए भावनाने पूरी करवा, तुज कृपा अवधारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो... ...१३ पंच भरतने ऐरावते तिम महाविदेहे जे वसे, व्रतधारी केवली नामधारी, श्रावकादि जे हशे; सुरशक्तिथी तेहने करुं हुं, भक्तिमां शिरदारजो, हे नेमिनाथ जिनेन्द्र, मारी प्रार्थना स्वीकारजो... ...१४ 30
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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