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जे रजत सोना ने अनुपम, रत्नना त्रण गढमहीं, सुवर्णना नवपद्ममां पदकमलने स्थापन करी, चारे दिशा मुख चार चार, सिंहसने जे शोभता, एवा (३०)
ज्यां छत्र सुंदर उज्जवळा, शोभी रह्या शिर उपरे, ने देवदेवी रत्न चामर वींझता करद्वय वडे, द्वादश गुणा वर देववृक्ष, अशोकथी य पूजाय छे, एवा (३१)
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महासूर्य सम तेजस्वी शोभे, धर्मचक्र समीपमां, भामंडले प्रभुपीठथी, आभा प्रसारी दिगंतमां, चोमेर जानु प्रमाण पुष्पो, अर्ध्य जिनने अर्पता, एवा (३२)
ज्या देवदुंदुभि घोष गजवे, घोषणा त्रणलोकमां, त्रिभुवन तणा स्वामी तणी, सौए सुणो शुभदेशना, प्रतिबोध करता देव, मानव ने वळी तिर्यंचने, एवा (३३)
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ज्यां भव्य जीवनो अविकसित खीलतां प्रज्ञाकमळ, भगवंतवाणी दिव्यस्पर्श, दूर थतां मिथ्यां वमळ, ने देव दानव भव्य मानव, झंखता जेनुं शरण, एवा (३४)
जे बीजभूत गणाय छे, त्रण पद चतुर्दश पूर्वना, उप्पन्नेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा महातत्त्वना, ए दान सुश्रुतज्ञान देनार त्रण जगनाथ जे, एवा (३५)
जे चौदपूर्वोनां रचे छे, सूत्रसुंदर सार्थ जे, ते शिष्यगणने स्थापता, गणधर पदे जगनाथ जे, खोले खजानो गूढ मानव जातना हित कारणे, एवा (३६)