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________________ कहेशो अमने कह्युं नही, आठ भवनी हो प्रीत, वलतुं वालम वालमां, ए छे उत्तम रीत ||३|| लेख वांचीने राजीमति, चढियां गढ गिरनार, स्वामी हाथे संयम लीधो, पाळे पंच आचार ||४|| धन्य राजुल धन्य नेमजी, धन्य धन्य बेहुनी प्रीत, संयम पाळी मुक्ते गयां, रूप वंदे निशदिन ||५|| (१५) राग: सोनामां सुगंध भळे... सुणोसखी सज्जन ना विसरे, सुणो सखी०... आंकणी० आठ भवांतर नेह निवाही, नवमें कयुं विसरे; नेह विलुघा आ दुनियामें, झंपापात करे सु०. ॥१॥ घर छंडी परदेशमें भमता, पूरण प्रेम ठरे; जान सजी करी जादव आये, नयने नयन मिले सु० ॥२॥ तोरण देख गये गिरनारे, चारित्र लेइ विचरे; दूषण भरिया दुर्जन लोको, दयिता दोष भरे सु० ||३|| मात शिवासुत सांभल सज्जन, साचा इम ठरे; तोरण आइ मुज समजाइ, संयम शान करे सु० ||४|| राजुल राग विरागे रहेती, ज्ञान वधाइ वरे; प्रीतम पासे संयम वासे, पातिक दूर करे सु०॥५॥ सहसावनकी कुंज गलनमें ज्ञान से ध्यान धरे; केवल पामी शिवगति गामी, आ संसार तरे सु०॥६॥ नेमिजिणेसर सुख सय्याएं, पोढ्या शिवनगरे; श्री शुभवीर अखंड सनेही, कीर्ति जग प्रसरे सु० ॥७॥ , 1 ૧૩
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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