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________________ करवू नहोतुं लग्न तोये केम आव्या परणवा? नव भव तणी जे प्रीतडी तेने ज नित्य बनाववा; बस कोल देवा राजुलाने के ना भजजो अन्यने, निरख्यु...१५ लोकांतिकोना वचनथी व्रतग्रहण वेळा मन धरी, दई दान वार्षिक विश्वमा दारिद्र दुःखो संहरी; मातापितानी संमतिथी सर्व ममताने तजे, निरख्यु...१६ रैवतगिरिनी मध्यमां सहसाम्रवनमा संचर्या, त्यां सहसनर साथे तमे स्वामी प्रव्रज्याने वर्या; ने मनः पर्यवज्ञान प्रगट्युं व्रतग्रहण केरी क्षणे, निरख्यु...१७ छद्मस्थकाळे दिवस चोप्पन अप्रमत्तपणे रह्या, तप ध्यान केरा उग्र अनले घाती कर्मोने दह्या; . सहसाम्रवनमां श्रेणि मांडी केवलश्री मेळवे, निरख्यु...१८ रत्न कंचन रजतना त्रण गढ सुरो असुरो रचे, प्रभु देशनानो मेघ वरस्यो बार पर्षदनी विचे; वरदत्त आदि गणधरोनी थापना थई त्यां कने, निरख्यु...१९ जे मद्य पीए द्यूत खेले केई करे दुष्कर्मने, क्रोडो गमे ते जादवोने पांडवोने सर्वने, आ घोर भवथी तारनारा तीर्थने थाप्युं तमे, निरख्यु...२० -
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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