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जे नाथ औदारिक वळी, तैजस तथा कार्मण तनु, ए सर्वने छोडी अहीं, पाम्या परमपद शाश्वतु, जे रागद्वेष जळे भर्या, संसार सागरने तर्या, एवा (४३)
(निर्वाण कल्याणक) शैलेशी करणे भाग त्रीजे, शरीरना ओछा करी, प्रदेश जीवना घन करी, वळी पूर्वध्यान प्रयोगथी, धनुष्यथी छूटेल बाण तणी परे शिवगति लही, एवा (४४)
निर्विघ्न स्थिरने अचल, अक्षय, सिद्धिगति ए नामर्नु, छे स्थान अव्याबाध ज्यांथी नहि पुनः फरवापर्यु, ए स्थानने पाम्या अनंता, ने वळी जे पामशे, एवा (४५)
आ स्तोत्रने प्राकृतगिरामां वर्णव्युं भक्तिबळे, . अज्ञातने प्राचीन महामना, को मुनीश्वर बहुश्रुते, पदपद महीं जेना महासामार्थ्यनो महिमा मळे, एवा (४६)
जे नमस्कार स्वाध्यायमां, प्रेक्षी हृदय गद्गद बन्युं, श्री चंद्र नाच्यो ग्रंथ लई, महाभागनुं शरणुं मण्यु, कीधी करावी अल्पभक्ति, होंशनुं तरणुं फळ्युं, एवा (४७)
जेना गुणोना सिंधुना, बे बिंदु पण जाणुं नहि, पण एक श्रद्धा दिलमहि के नाथ सम को छे नहि, जेना सहारे क्रोड तरीया मुक्ति मुज निश्चय सहि. एवा (४८)
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