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________________ झनन झनन जनकारो रे... झनन झनन जनकारो रे, बोले आतमनो एकतारो रे, हवे प्रभुजी पार उतारो. तारलियाना तोटा नहि पणं सूरज चंदा ओक छे. देव अनेरा दुनियामां पण मारे मन तुं ओक छे. झनन झनन जनकारो रे, बोले घूघरीनो घमकारो रे... हवे... अवनी पर आकाश रहे तेम करजो अम पर छाया, निशदिन अंतर रमती रहेजो नेमिवर तारी माया, चमक चमक चमकारो रे, तारो मुखडानो मलकारो रे... हवे... उषा संध्याना रेशम दोरे, सूरज चंदा झूले, चडती ने पडतीना झूले मानव सघळा झूले, सनन सनन सनकारो रे, तारी वाणीनो रणकारो रे... हवे...' तुं छे माता, तुं छे पिता, तुं छे जगनो दीवो, शिवादेवीना नानकडा नंदन, जगमां जुग जुग जीवो, झनन झनन झनकारो रे, मुज प्राण थकी तुं प्यारो रे... हवे... दीनानाथजी... ओक बार मुखडो बताओ दीनानाथजी थारी मोहनी मूरत लागे प्यारी, नेमिनाथ अरज सुणो... अकबार रैवताचलना राजा थे, तो गिरनारना राजा, शिवादेवी रा लाडका लाल, नेमिनाथ अरज सुणो... अकबार निर्दोष पशुअनकी थे तो, करुणा कीधी अपार रे, मारा वालजी राजीमती रा कंत, नेमिनाथ अरज सुणो... अकबार PRIMARITERMIRE २०१
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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