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गरवा गिरि गिरनारने राग : मंदिर छो मुक्ति...
जे अमर शत्रुजयगिरि, शिखर पंचम शोभतुं, सोवनमयी सोरठ धरा पर, तिलकसम जे दीपतुं, उत्तुंग जेना शिखर पर छे, नेमिजिनना बेसणा, गरवागिरि गिरनारने होजो सदा मुजवंदना.
गरवा..१
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जे परम उत्तम शृंग पर, श्री नेमिजिन दिक्षित बन्यां, केवल करी केइ जीवतारी ने प्रभु शिव संचर्या, चोवीशे भावी जिनवरा ज्यां पामशे सुख शाश्वता.
गरवा..२
जेने सदा सेवी रह्यां, सुर असुरने नरपति अहो! त्रण कालमांत्रण लोकमां, यश जेहनो गाजी रह्यो, रैवतगिरि, कैलास वळी नंदभद्र नामो गाजतां,
गरवा..३
सुरलोकथी पण अधिक सोहे, पृथ्वी आ गिरनारनी, ज्यां पुनित पगले संचर्या, शिवादेवी नंदन जगपति, राजुल पण विरति वरीने पामी मुक्ति संपदा.
गरवा..४
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गिरनारना सांनिध्यमां, पामे सहु शाता बहु, गिरनारना सध्यानथी, पापो टळे संचित सहु, गिरनारना आलंबने, उज्जवळ बने छे आतमा.
गरवा..५
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