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(४) रहो रहो । . रगा : बोलो बोलो रे शालीभद्र... रहो रहो रे यादवजी दो घडीयां. रहो..
दो. घडीयां, दो चार घडीयां, रहो रहो रे यादवजी दो घडीयां; शिवा मात. मल्हार नगीनो, क्युं चलीए हम विछडीयां; यादव वंश विभूषण स्वामी, तुमे आधार छो अडवडीयां. रहो रहो. १ तो बिन ओरसें नेह न किनो, ओर करनकी आंखडीयां; इतने बिच हम छोड न जइए, होत बुराइ लाजडीया. रहो रहो. २
प्रीतम प्यारे कहकर जानां, जे होत हम शिर बांकडीयां; - हाथसे हाथ मिलादे सांइ, फुल बिछाउं सेजडीयां. रहो रहो. ३
प्रेमके प्याले बहुत मसाले, पीवत मधुरे सेलडीया; समुद्रविजय कुलतिलक नेमकुं, राजुल झरती आंखडीयां. रहो रहो. ४ राजुल छोड चले गिरनारे, नेम युगल केवल वरीयां; राजमिती पण दीक्षा लीनी, भावना रंग रसे चडीयां. रहो रहो. ५ केवल लइ करी मुगति सिधाये, दंपति मोहन वेलडीयां; श्री शुभवीर अचल भइ जोडी, मोहराय शिर लाकडीयां. रहो रहो. ६
(५) अब मोरी अरज अह मोरी अरज सुनो महाराज, हो गिरनार के जानेवाले; गिरनार के जानेवाले, हो मुगति के पानेवाले (अंचली) अब, मुक्ति भोग जोग लीया धार, अब कया सोचो नेमकुमार; करती राजुल सोच विचार, वेरण मुक्तिने घर घाला. अ. १ तोरण आय रथ दीया फेर, प्रभु तुम सुनी पशुअनकी टेर; तुमने जरा न कीनी डेर, नव भव प्रीत निभानेवाले. अ. २
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