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________________ दर्शनथी तारा अमने, जीववानुं जोम मळतुं, हैयामां शांति थाती, जे रहे छे सदाय बळतुं, तुं साथे छे अमारी, तेथी भक्तिमां मनडुं भळतुं, कहेवी छे बधी हकीकत, सुख दुःखना साथी मारा... दुखियाना ओ दिलासा, अक ज छे आश तारी, रीझववा प्रभुजी तमने, वर्णवीओ कथा अमारी, हवे जीवन नावडीने, करो पार प्रभुजी प्यारा... सूरज की गरमी से। सूरज की गरमी से जलते हुओ तन को, मिल जाये तरुवर की छाया जैसा ही सुख मेरे मनको मिला है मैं, जब से शरण तेरी आया... मेरे नाथ... . भटका हुआ मेरो मनथी कोई मिला ना रहा हो सहारा, लहेरो से लटी हुइ नाव को जैसे, मिल ना रहा हो किनारा, उस लडखडाती हुई नाव को जो कीसी ने किनारा दिखाया... शीतल बनी आग चंदन के जैसी, राघव कृपा हो जो तेरी, उजयारी पूनम की हो जाये राते, जो थी अमावश अंधेरी, युग युग से प्यासी मुरुभूमिने जैसे, सावन का संदेश पाया... जिस राहो की मंजिल तेरा मिलन हो, उस पर कदम में बढाउं; फूलो में खारो में पतझड बहारो में, मैं ना कभी डगमगाउं पानी के प्यासे को तकदीर ने जैसे, जि भरके अमृत पिलाया... ૨૦૬
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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