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हाथ-पग निर्बळं बने ने... श्वास छेल्लो संचरे, ओ दयाळु ! आपजे... दर्शन मने छेल्ली घडी... हुं जीवनभर सळगी रह्यो ... संसारना संतापमां, तुं आपजे शांतिभरी निद्रा मने छेल्ली घडी... अंत समये आवी मुजने, ना दमे घट दुश्मनो, जाग्रत पण मनमां रहे... तारुं स्मरण छेल्ली घडी...
मैत्री भावनुं पवित्र झरणुं
मैत्रीभावनुं पवित्र झरणुं, मुज हैयामां वह्या करे, शुभ थाओ आ सकल विश्वनुं, ओवी भावना नित्य रहे; गुणथी भरेलां गुणीजन देखी, हैयुं मारुं नृत्य करे, ए संतोना चरणकमलमां, मुज जीवननुं अर्ध्य रहे... मैत्री दीन, क्रूर ने धर्म विहोणां, देखी दिलमां दर्द रहे, करुणा भीनी आंखोमांथी, अश्रुनो शुभस्रोत वहे... मैत्री मार्ग भूलेला जीवन पथिक ने मार्ग चींघवा ऊभो रहूं, करे उपेक्षा ए मारगनी तो ये समता चित्त धरुं; चंद्र - प्रभुनी धर्म भावना, हैये सौ मानव लावे, वेरझेरना पाप तजीने, मंगल गीतो अ गावे ... मैत्री
समताथी दर्द सहु
( राग : ओघो छे अणमूलो... )
समताथी दर्द सहुं प्रभु अवुं बळ देजो, मारी विनंती मानीने मने आटलं बळ देजो... कोई भवमां बांधेला मारां कर्मों जाग्या छे,
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