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________________ गोमेध जक्षने अंबिका, शासन रखवाल, जिननी सेवा जे करे, तेनी करे सारसंभाल; आभव परभव सुख घणुं, जे ध्यावे चित्त, मुनि हूकम जिन सेवीए, शिव पामवानी रीत ... (४) श्री गिरनार महातीर्थना खमासमणाना दुहा अनंत; रेवतगिरि समरूं सदा, सोरठ देश मोझार; मानवभव पामी करी, ध्यावुं वारंवार (१) सोरठदेशमां संचर्यो, न चढ्यो गढ गिरनार; सहसावन फरश्यो नही, एनो एळे गयो अवतार (२) दीक्षा - केवल सहसावने, पंचमे गढ निर्वाण; पावनभूमिने फरशता, जनम सफळ थयो जाण (३) जगमां तीरथ दो वडा. शत्रुंजय गिरनार; एक गढ ऋषभ समोसर्या, एक गढ नेमकुमार (४) कैलास गिरिवरे शिववर्या, तीर्थंकरो आगे अनंता पामशे, तीरथकल्प वदंत गजपद कुंडे नाहीने, मुखबांधी मुखकोश; देव नेमिजिन पूजतां, नाशे सघळा दोष एके कुं पगलुं चढे, स्वर्णगिरिनुं जेह; हेम वदे भवोभवतणां, पातिक थाये छेह ... (७) उज्जयंत गिरिवर मंडणो, शिवादेवीनो नंद; यदकुळवंश उजाळीयो, नमो नमो नेमिजिणंद ... (८) आधि व्याधि उपाधि सौ, जाये तत्काळ दूर; भावथी नंदभद्र वंदता, पामे शिवसुख नूर (९) (4) (६) Ge ... ... ... ... ...
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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