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________________ ८२ ८३ ८४ ८५ ८६. ८७ ८८ ८९ ९० विरतीगिरि परमाणु जे सहसावने, दिये विरती परिणाम; अंतराय सवि दूरे करी, सप्त गुणठाणुं पाम. व्रतगिरि हरि पटराणीने यादवो, प्रद्युम्न शांब कुमार; व्रतगिरि व्रत ग्रही, पाम्या भवनो पार. संयमगिरि जिन अनंता सहसावने, नेमिप्रभु ठवे पाय; संयम ग्रही मन - पर्यवी, ध्यानधरी मुगते जाय. सर्वज्ञगिरि रवि लोक प्रकाशतो, सर्व लोका लोक; मोह तिमिर दूरे टळे, चेतन शक्ति आलोक. केवलगिरि . ओक ओक प्रदेशमां, गुण अनंतनो वास; इणगिरि केवल लइ, भोगवे लील विलास. ज्ञानगिरि सहजानंद सुख पामियो, ज्ञान रस भरपूर; तेहना बळथी में हण्यो, मोह सुभट महाक्रूर. निर्वाणगिरि जे गिरिओ अनंता, निर्वाण पाम्या जिन; ते निर्वाणगिरि पर, कोई नहिं दीन हिन. तारकगिरि आंगणुं ओ गिरि तणुं, पामे जल थल जेह; भव सातमे मुक्ति लहे, तारकपणुं गुण गेह, शिवगिरि राजीमतिने रहनेमि सहसावने दीक्षा लीध; वळी शिवपद पामिया, इणगिरि अनशन कीध. 393
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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