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विरतीगिरि
परमाणु जे सहसावने, दिये विरती परिणाम;
अंतराय सवि दूरे करी, सप्त गुणठाणुं पाम. व्रतगिरि
हरि पटराणीने यादवो, प्रद्युम्न शांब कुमार; व्रतगिरि व्रत ग्रही, पाम्या भवनो पार. संयमगिरि
जिन अनंता सहसावने, नेमिप्रभु ठवे पाय;
संयम ग्रही मन - पर्यवी, ध्यानधरी मुगते जाय. सर्वज्ञगिरि
रवि लोक प्रकाशतो, सर्व लोका लोक; मोह तिमिर दूरे टळे, चेतन शक्ति आलोक. केवलगिरि
. ओक ओक प्रदेशमां, गुण अनंतनो वास; इणगिरि केवल लइ, भोगवे लील विलास. ज्ञानगिरि
सहजानंद सुख पामियो, ज्ञान रस भरपूर; तेहना बळथी में हण्यो, मोह सुभट महाक्रूर. निर्वाणगिरि
जे गिरिओ अनंता, निर्वाण पाम्या जिन; ते निर्वाणगिरि पर, कोई नहिं दीन हिन. तारकगिरि
आंगणुं ओ गिरि तणुं, पामे जल थल जेह; भव सातमे मुक्ति लहे, तारकपणुं गुण गेह, शिवगिरि
राजीमतिने रहनेमि सहसावने दीक्षा लीध; वळी शिवपद पामिया, इणगिरि अनशन कीध.
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