________________ समान जिस शरीर में नाभि से ऊपर के अवयव पूर्ण हों किन्तु नाभि से नीचे के अवयव हीन हों, उसे न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान कहते हैं। जिस कर्म के उदय से इस की प्राप्ति होती है, उसे न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननामकर्म कहते हैं। ४६-सादिसंस्थाननामकर्म-जिस शरीर में नाभि से नीचे के अवयव पूर्ण और ऊपर के अवयव हीन होते हैं, उसे सादिसंस्थान कहते हैं। जिस कर्म के उदय से इस की प्राप्ति होती है उसे सादिसंस्थाननामकर्म कहते हैं। ४७-कुब्जसंस्थाननामकर्म-जिस शरीर के साथ पैर, सिर, गरदन आदि अवयव ठीक हों किन्तु छाती, पीठ, पेट हीन हों, उसे कुब्जसंस्थान कहते हैं, जिसे कुबड़ा भी कहा जाता है। जिस कर्म के उदय से इस संस्थान की प्राप्ति होती है उसे कुब्जसंस्थाननामकर्म कहते हैं। ४८-वामनसंस्थाननामकर्म-जिस शरीर में हाथ, पैर आदि अवयव छोटे हों और छाती, पेट आदि पूर्ण हों उसे वामनसंस्थान कहते हैं। जिसे बौना भी कहा जाता है। जिस कर्म के उदय से इस की प्राप्ति होती है उसे वामनसंस्थाननामकर्म कहते हैं। - ४९-हुंडसंस्थाननामकर्म-जिस के सब अवयव बेढब हों, प्रमाणशून्य हों, उसे हुण्डसंस्थान कहते हैं। जिस कर्म के उदय से ऐसे संस्थान की प्राप्ति होती है उसे हुंडसंस्थाननामकर्म कहते हैं। . ५०-कृष्णवर्णनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव का शरीर कोयले जैसा काला होता है। ५१-नीलवर्णनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव का शरीर तोते के पंख जैसा हरा होता है। ..५२-लोहितवर्णनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव का शरीर हिंगुल या सिन्दुर जैसा लाल होता है। - ५३-हारिद्रवर्णनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव का शरीर हल्दी जैसा पीला होता ____५४-श्वेतवर्णनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव का शरीर शंख जैसा सफेद होता ५५-सुरभिगन्धनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव के शरीर की कपूर, कस्तूरी आदि पदार्थों जैसी सुगन्धि होती है। ___५६-दुरभिगन्धनामकर्म-इस कर्म के उदय से जीव के शरीर की लहसुन या सड़े प्राक्कथन] श्री विपाक सूत्रम् [45