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आत्माभिव्यक्ति 0 साध्वी उमरावकुवर "अर्चना"
अात्मस्वरूपाधिगत बन्धुगण, भगिनीवृन्द !
मेरे प्रति अभिवन्दन, अभिनन्दन, अभिशंसन के रूप में जो श्रद्धा-संपृक्त, भक्ति-विभावित, सात्त्विक, स्नेहांचित हृदयोद्गार आप सब ने व्यक्त किये हैं, इससे मुझे मन ही मन बड़े संकोच एवं आत्मत्रपा की अनुभूति हो रही है। मैं अपने आपको इस योग्य नहीं पाती। आत्माभिमुख होकर मैं अन्तनिरीक्षण करती हूँ तो मुझे अपने में अगणित त्रुटियाँ एवं दुर्बलताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। जब अर्चन-वंदन, अभिनन्दन का प्रसंग चला, मैंने अन्तःकरण से इसके प्रकाशन का विरोध किया और इसकी संयोजिका, संपादिका साध्वी सुप्रभाजी 'सुधा' को भी बहुत कुछ कहा । उनके एवं उनकी सहवर्तिनी साध्वीवृन्द के अपने श्रद्धाप्रसूत भाव थे, जिनमें वे अपनी दृष्टि से उपादेयत्व मानती थीं। सुप्रभाजी अपने विचारों पर, जिनमें भक्ति का उद्रेक था, अडिग रहीं। मैं और अधिक क्या करती ? ____ मैं साधना-पथ की पथिका हूँ। अपनी अन्तःशक्ति संजोए गन्तव्य की ओर गतिशील हूँ, अग्रसर हूँ। परम श्रद्धास्पद पूज्य गुरुदेव एवं सद्गुरुवर्या की सशिक्षा को अात्मसात करने की दिशा में मेरा सतत प्रयत्न है, फिर भी अवस्था तो छद्मस्थ ही है, अत: जीवन में भूलें होना स्वाभाविक है। ___ प्रात्मावगाहन करती हूँ तो प्रतीत होता है, परम पूज्य प्रातःस्मरणीय स्व. गुरुदेव स्वामीजी श्री हजारीमलजी म. सा. के मुखारविन्द द्वारा मेरी जीवन-निर्मात्री परमपूज्या सद्गुरुवर्या महासतीजी श्री सरदारकुंवरजी म. सा. के सान्निध्य में जब से मैंने दीक्षा ग्रहण की, तब से लेकर अब तक जीवन में प्रमादवश. असावधानीवश भूलें भी हुई हैं। अपनी गुणग्राहिणी अन्तर्वृत्ति के कारण आप लोगों ने उन भूलों को दृष्टिगोचर न कर मेरे सम्बन्ध में अपने-अपने भावों के अनुरूप गुणस्तवन, यशःकीर्तन एवं वन्दन-अर्चन आदि के रूप में अनेक विधाओं में अपने हृदयोद्गार अभिव्यक्त किये हैं । मैं अन्तःकरण से इसे अपना अभिनन्दन, अभिवन्दन न समझ शासनेश महाश्रमण परमप्रभु महावीर द्वारा निर्दिष्ट तप, संयमस्वरूप साधना का ही अभिनन्दन समझती हूँ। .. अन्त में मैं हृदय की गहराई से यह मंगल-कामना करती हूँ, मेरी आस्था के अमृत-सिन्धु, परम पूज्य श्रद्धय गुरुदेव एवं गुरुणीजी म. सा. की अज्ञात रूप से ही सही पर कृपा और आप लोगों की शुभाभिवांछा से मेरा साधना-पथ निरन्तर उजागर रहे, प्रशस्त बना रहे, मैं उस पर अनवरत अपरिश्रान्त रूप से अग्रसर होती रहूँ।
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