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युवाचार्यप्रवर श्रीमधुकरमुनिजी म० का योगदान / ८१
प्रतएव वे उन्हें सद्गुणों के अर्जन में सतत प्रयत्नशील रहने का संदेश देते रहे । महासतीजी भी उनके प्रेरक संदेशों के अक्षर-अक्षर को अनमोल रत्नों की ज्यों अपने जीवन में संजोती रहीं । उसी का परिणाम था कि वे प्रज्ञा, साधना, शक्ति-संचय और लोक-कल्याण के क्षेत्र में उत्तरोत्तर आगे बढ़ती गईं। यही कारण है कि आज श्रमण संस्कृति के विशाल क्षेत्र में उनका अपना अनुपम स्थान है ।
महासती श्री उमरावकुंवरजी म. को अपने ग्यारह चातुर्मास्य परम श्रद्धास्पद युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म. की सन्निधि में करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जिनमें वे उनसे लाभान्वित होते रहने का अनवरत प्रयत्न करती रहीं । वे चातुर्मास्य निम्नांकित हैं
वि० सं०
१९९५
१९९७
२०००
२००६
२०१०
२०१३
२०१४
२०२०
२०२१
२०३३
२०३८
स्थान
ब्यावर
पाली
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ब्यावर
तिवरी
अजमेर
ब्यावर
जोधपुर
महामंदिर
रायपुर
नागौर
नोखा
अपने दीक्षित जीवन के प्रारम्भ से ही विद्याध्ययन, शास्त्राध्ययन की दिशा में महासतीजी को युवाचार्यश्रीजी का प्रेरणादान, योगदान उपलब्ध रहा । उसे उन्होंने अपने अभ्यासक्रम में एक अमूल्य सूत्र के रूप में संजोया । युवाचार्यश्रीजी से प्रज्ञापनासूत्र आदि के अध्ययन का भी उन्होंने रायपुर चातुर्मास्य में सुअवसर प्राप्त किया । युवाचार्यश्री के मार्गदर्शन में वे अपने को विद्या के क्षेत्र में उत्तरोत्तर अधिकाधिक अग्रसर करती रहीं ।
सम्मिलित चातुर्मास्यों के समय तथा किसी एक ग्राम या नगर में एक साथ हुए प्रवास के समय महासतीजी प्रायः प्रतिदिन अपनी श्रमणी अन्तेवासिनियों के साथ उनकी सेवा में उपस्थित होती, उनसे उनके बहुमूल्य, अनुभूत सत्यों का श्रवण करतीं । वह ज्ञान-संचय का क्रम सदा अकुण्ठित व अबाधित रहा ।
वाचार्यश्री बड़े गुणग्राहक थे, अत्यन्त सहिष्णु थे, हर किसी स्थिति में अपने को संतुलित बनाये रखने में सर्वथा सक्षम थे । छोटे से छोटे गुणसंपन्न व्यक्ति का वे सम्मान करते थे । ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय में सदा निरत रहते थे । युवाचार्यश्रीजी
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