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द्वितीय खण्ड / १५४
संवत् २०२५ का आपका चातुर्मास किशनगढ़ शहर में था। हम लोग दर्शन के लिये जाना चाह रहे थे । मैं और मेरे माताजी अजमेर आये थे। मेरी धर्मपत्नी इचरजकुंवर और बच्चे घर पर ही थे। उस समय घर पर ही काम करने वाले आदमी से, जो जाति का ठाकुर है, लेन-देन के मामले के कारण परस्पर वैमनस्य हो गया था । वह तलवार लेकर मुझे मारने घर पर आ गया, मैं अजमेर था, मेरी पत्नी से उसने कहा काका सा० कहाँ हैं ? आज मैं उनको खत्म करके ही दम लंगा। मेरी पत्नी ने बहुत ही प्रेम से कहा--बना, शाम को मैं तुम्हारा फैसला करवा दूंगी, ऐसा मत करना । लेकिन वह यह कहते हुए नीचे उतर गया कि वह जहाँ भी मिलेंगे खत्म कर दूंगा। मेरी पत्नी बुरी तरह से घबराई हुई, कमरे के अन्दर किसी को आवाज देने के लिये झरोखे में गई तभी वह तलवार लेकर वापिस कमरे में आ गया । निरन्तर उसने तलवार के छः वार किये, (हमारे मन में धरम के प्रति हमेशा से श्रद्धा रही है और महाराज श्री के प्रति तो विशेष ही है) मेरी पत्नी की एक आँख निकलकर बाहर आ गई, हाथ कट गया, सिर और गर्दन में गहरे घाव हो गये, किन्तु निरन्तर महाराजश्री का नाम पुकारती रही। उसी समय उसको गजसूकमाल मुनि के सर पर रखे अंगारे दिखाई दिये, वह ज्यों की त्यों खड़ी रही, सारा कमरा खून से रंग गया, वह व्यक्ति हाथ में तलवार लेकर वहाँ से भाग गया। बाजार में सभी लोगों ने देखा पर पकड़ने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई । मेरे नौकर एवं भतीजे की बहू के शोर मचाने पर पूरा घर भर गया, तत्काल एम्बुलेंस के द्वारा अजमेर के हास्पिटल में एडमिट करवाया गया। मेरे जीवन का यह प्रसंग बहुत ही दर्द भरा और मन को मथने वाला था। डॉक्टरों के प्रयास से प्राण तो बच गए किन्तु मन मस्तिष्क का संतुलन बिगड़ गया और वह निरन्तर महाराज श्री को स्मरण करती रही । चातुर्मास समाप्त होते ही महाराजश्री किशनगढ़ से अजमेर पधार गये। अजमेर और तबीजी में महाराजश्री करीबन दो-ढाई महिने विराजे और मेरी पत्नी दिन-रात महाराजश्री की सेवा में रही। अाँख तो नहीं बच सकी किन्तु तन और मन से पूर्ण स्वस्थ्य है। कभी तनिक भी मानसिक या शारीरिक अस्वस्थता महसूस होती है तो हम महाराजश्री की सेवा में पहुँच जाते हैं । मैं महाराजश्री का संसार पक्षीय देवर हूँ। हमारे घर में समय-समय पर अनेक प्रभाविक दृश्य उपस्थित होते रहते हैं । मैं अपनी जिह्वा से उनके सम्बन्ध में जितना भी कहूँ, वह कम पड़ता है।
नाम का प्रभाव 0 राजकुमार विनायक्या, तबीजी
महाराजश्री संसार पक्ष में मेरे ताईजी हैं, जब बाईजी के तकलीफ थी तो आपको तबीजी हमारे प्राग्रह से विराजना पड़ा। मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई
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