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बाबजी की कृपा अकथनीय है / २२९
नहीं हुया । मेरे पुत्र को म० सा० ने जब वात्सल्यमय दृष्टि से देखा और कहा 'तुम । ठीक हो जाओगे।' तो मेरी आत्मा से आवाज आई कि वह अवश्य ही ठीक हो । जायेगा । मैं उसे लेकर गुरुणोजी सा० की सेवा में जाती और बच्चे को मांगलिक . सुनवाती । धीरे-धीरे आँख की पुतली यथास्थान आ गई। इसके लिए म० सा० का किन शब्दों से आभार व्यक्त करूं । मैं जीवन भर इनका उपकार नहीं भूल सकूँगी । मैं म. सा. के निर्देशानुसार नित्य नियम माला, ध्यान आदि करती हूँ। पलकें बन्द करते ही उनका दिव्य रूप सामने आ जाता है । सदैव भक्तों के हृदय में रहने वाली महासतीजी के सुदीर्घ जीवन की मैं मनोकामना करती हूँ।
पित-मात सहायक स्वामी सखा बनकर
गुरुणीजी सा० जीवन के कष्ट हरते हैं. बाबजी की कृपा अकथनीय है
0 श्रीमती पदमकुवर, गागुडी
मैं महासती श्री उमरावकुंवरजी म. सा० का बड़ा उपकार मानती हूँ। हमारे गांव में वैष्णव लोगों का पदार्पण होता ही रहता है लेकिन जैन सन्त साध्वी का प्रागमन कभी नहीं हुआ था। अपने ठिकाने में हम लोग श्री सुखरामजी महाराज की वाणी पढ़ा करते हैं, जिन्होंने बिराही गांव में अठारह वर्ष एक ही आसन पर तपस्या की थी। सुखराम बाबजी जिनके प्रभाव से हमें आत्मज्ञान हुआ था उन्होंने ३३००० पदों की रचना की थी, इनके संग्रह को हम वाणी कहते हैं और अब तक वाणी को प्रेस में छपवाने की मनाही है। वाणी के आधार पर अनेक सन्त और गहस्थों को आत्मजागति हई और उनकी समाधि लगने लगी। हमारी वाणी में तीर्थंकरों, महाविदेह क्षेत्र, केवलज्ञान व पाँच ज्ञान आदि का वर्णन आता है। जैनदर्शन से सम्बन्धित अनेक तत्त्व हमारी समझ में नहीं आते थे।
महासती श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म. सा. एक बार हमारे गाँव के बाहर प्याऊ पर रात्रिविश्राम के लिए विराजे । वह कुचेरा से विहार कर मेड़ता पधार रहे थे । गाँव में जब हमको ज्ञात हुआ, सभी ठकुरानियाँ-ठाकुर आदि ट्रक भर म० सा० के दर्शन करने पहुँचे। रात को बारह-एक बजे तक ज्ञान-चर्चा चलती रही और हमारे मन में बडी जिज्ञासा हुई वाणी का अर्थ म० सा० से समझे । हमारी प्राग्रह भरी विनती स्वीकार करके म० सा० श्री हमारे गाँव में पधारे । पूरा गाँव आपके प्रवचनों से बहुत प्रभावित हुआ । हम मेड़ता तक पैदल यात्रा में म० सा० के साथ रहे । जब जब भी समय मिलता, ज्ञान-ध्यान सम्बन्धी चर्चायें चलती रहती थीं।
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