________________
जैनदर्शन के आलोक में
पुद्गलद्रव्य
श्री सुकनमुनि ( श्रमणसूर्य मरुधर केसरीजी म. के शिष्य )
पुद्गल शब्द दार्शनिक चिन्तन के लिये अनजाना नहीं है और विज्ञान के क्षेत्र में भी मैटर, इनर्जी शब्दों द्वारा जाना जाता है । श्राज के भौतिक विज्ञान का समग्र परिशीलनअनुसंधान पुद्गल पर ही प्राधारित है। पुद्गल के भेद परमाणु की प्रगति ने तो विश्व को उसकी शक्ति सामर्थ्य से परिचित होने के लिये जिज्ञासाशील बना दिया है ।
पाश्चात्य देशों की मान्यता है कि पुद्गल परमाणु का उल्लेख सर्वप्रथम डेमोक्रेट्स नामक वैज्ञानिक ने किया है । भारतीय दर्शनों में भी परमाणु का उल्लेख अवश्य है, लेकिन वह नहीं जैसा है, जितना जैनदर्शन में पुद्गल और उसके भेद-प्रभेद परमाणु, स्कन्ध आदि के विषय में विवेचन किया गया है । अतः यहाँ जैनदर्शन में वर्णित पुद्गल से सम्बन्धित विवेचन का संक्षेप में वर्णन करते हैं ।
पुद्गल जैन पारिभाषिक शब्द है । बौद्धदर्शन में भी यद्यपि पुद्गल शब्द व्यवहृत हुआ है लेकिन वहाँ आत्मा के लिये उसका प्रयोग हुआ है ।
जैनदर्शन का पुद्गल शब्द विज्ञान के मैटर का पर्यायवाची है और पारिभाषिक होते हुए भी यह रूढ नहीं अपि तु व्यौत्पत्तिक है— जो पुत्- मिलन और गल-गलन स्वभाव वाला हो उसे पुद्गल कहते हैं । यानी जो वस्तु दूसरी वस्तु से मिलती रहे एवं गले - रहित हो, वह गलन और मिलन के स्वभाव वाली वस्तु पुद्गल कहलाती है ।
जैन आगमों में पुद्गल के बारे में बताया है कि उसमें पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श गुण होते हैं, वह रूपी है, नित्य है, अजीव है, अवस्थित है और द्रव्य है । द्रव्यापेक्षा पुद्गल की संख्या अनन्त है, क्षेत्रापेक्षा लोकाकाश में व्याप्त है, काल की अपेक्षा उसका सदैव अस्तित्व है, भावतः वर्ण- गन्ध-रस स्पर्श वाला है -गुण की अपेक्षा ग्रहण गुण वाला है एवं पांच इन्द्रियों द्वारा ज्ञेय है ।
पुद्गल द्रव्य है अतएव उत्पाद-व्यय- ध्रौव्य रूप होने से पर्याय से पर्यायान्तरित होकर भी अपने मौलिक गुणों में अवस्थित रहता है ।
जैनदर्शन में उसके चार भेद माने हैं
१. स्कन्ध – दो से लेकर अनन्त परमाणुत्रों का एक पिंड रूप होना ( एकीभाव ) स्कन्ध है । स्कन्ध कम-से-कम दो परमाणुओं का होता है और अनन्त परमाणुत्रों के स्वाभाविक मिलन से एक लोकव्यापी महास्कन्ध भी बन जाता है ।
Jain Education International
२. स्कन्धदेश – स्कन्ध एक इकाई है। उसका बुद्धिकल्पित एक भाग स्कन्धदेश कहलाता है ।
For Private & Personal Use Only
धम्मो दोवो
संसार समुद्र में धर्म ही दीप है
www.jainelibrary.org