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चतुर्थ खण्ड / २२०
हैं। कहा जाता है कि एक बार पृथ्वीराज को दर्पण में अपने सिर पर एक सफेद बाल दिखाई दिया जिसे उन्होंने उखाड़ कर फेंक दिया। इनकी इस चेष्टा पर पीछे खड़ी चाम्पादे को हंसी या गई जिसे पृथ्वीराज ने दर्पण में देख लिया। इस पर उन्होंने यह दोहा कहा—
पीयल धोळा आविया बहुली लगी खोड़ । पूरे जोबन पद्मणी, ऊभी मुक्ख मरोड़ ॥
अपने पति को ग्लानि को मिटाने के लिए चाम्पादे ने तत्काल ही कुछ दोहे कहे जिनमें से एक यह है
प्यारी कहे पीथळ सुणो, घोळा दिस मत जोय ।
नरां नाहरां डिगमरां, पाकां ही रस होय ॥
४. रानी राड़धरी जी (२० का० सं० १६५० )
रावजी की पत्नी थीं। राजा और अधिकांश समय काव्यसृजन में ही
कवयित्री राधरी जी मारवाड़ के राड़धड़ा प्रांत के राणा की पुत्री और सिरोही के रानी दोनों ही काव्यानुरागी प्रकृति के थे। इसलिए उनका व्यतीत होता था। छन्द और अलंकार शास्त्र का आपको
अच्छा ज्ञान था ।
५. बिरजू बाई (२० का० सं० १८०० )
कवयित्री बिरजू बाई कविराजा करणीदान की द्वितीय पत्नी थीं। इनका रचनाकाल वि० सं० १५०० के आसपास है। बिरजू बाई समय-समय पर कविताएँ लिख कर चारण कवियों को दे दिया करती थीं। कई कवि उन्हें अपनी बता कर जागीरदारों से पुरस्कार पाया करते थे । भाव और भाषा की दृष्टि से इनकी रचनाएं बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं।
६. हरिजी रानी चावड़ी (२० का० सं० १८७५ से पूर्व )
कवयित्री हरिजी रानी का जन्म गुजरात के एक चावड़ा राजपूत कुल में हुआ था। ये जोधपुर के प्रतापी राजा मानसिंह की द्वितीय रानी थीं इन्होंने उत्कृष्ट भावपूर्ण श्रृंगाररस के गीतों का सृजन किया। इनके लिखे ख्याल टप्पे और गीत विविध राग-रागिनियों में मिलते हैं। लोकगीत और संगीत पर हरिजी रानी का अच्छा अधिकार था। इसीलिये इनके पदों में गेयता आ गई है। एक उदाहरण देखिये
बेगा नी पधारो म्हारा आलीजा जी हो । छोटी सी नाजुक धण रा पीव । ओ सावणियो उमंग रह्यो जी । हरिजी ने ओढण दिखणी रो चीर ॥ इन ओसर ओसर मिलणो मिलणी कद होसी, लाड़ी जी रो थां पर
जीव ॥
इस धारा की अन्य कवयित्रियों में काकरेची जी (१८ वीं शती का मध्य काल ) राव जोधाजी की सांखली रानी (१९ वीं शती का उत्तरार्ध) आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।
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