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प्रेक्षाध्यान और शक्ति-जागरण
अर्चनार्चन
0 युवाचार्य महाप्रज्ञ
प्रत्येक व्यक्ति शक्ति की इकाई है, किन्तु समस्या है शक्ति की अभिव्यक्ति। कुछ लोग अपनी शक्ति के विषय में अनजान रहते हैं। कुछ लोग उसके विषय में जानते हैं. पर उसको जागत करने के लिए अभ्यास नहीं करते । कुछ लोग जानते भी हैं, अभ्यास भी करते हैं, उनकी शक्ति प्रकट हो जाती है। अज्ञानी और प्रमत्त प्रादमी के शक्ति का स्रोत प्रस्फुटित नहीं होता । ज्ञानी और अप्रमत्त मनुष्य ही उसे प्रकट कर सकता है।
हमारे शरीर में अनेक शक्ति केन्द्र हैं । तंत्रशास्त्र और हठयोग में वे चक्र कहलाते हैं। आयुर्वेद में उन्हें मर्मस्थान कहा जाता है। प्रेक्षाध्यान की पद्धति में उनका नाम चैतन्य-केन्द्र है । ये केन्द्र सुप्त अवस्था में रहते हैं। इसलिए शक्ति के होने पर भी उनका पता नहीं चलता। जागत शक्ति ही मनुष्य के लिए उपयोगी बनती है। प्रेक्षाध्यान की पद्धति में प्रधानतया तेरह चैतन्य केन्द्रों की साधना की जाती है। वे चैतन्य केन्द्र ये हैं-शक्ति केन्द्र, स्वास्थ्य केन्द्र, तेजस केन्द्र, प्रानन्द केन्द्र, विशुद्धि केन्द्र, ब्रह्म केन्द्र, प्राण केन्द्र, अप्रमाद केन्द्र, चाक्षुष केन्द्र, दर्शन केन्द्र, ज्योति केन्द्र, ज्ञान केन्द्र, शान्ति केन्द्र ।
पृष्ठरज्जु के नीचे का स्थान शक्ति केन्द्र है। यह शारीरिक ऊर्जा-जैविक विद्युत् का भण्डार है। यहां से विद्युत् का प्रसारण होता है ।
पेडू के नीचे जननेन्द्रिय का अधोवर्ती स्थान स्वास्थ्य केन्द्र है । ग्रन्थितन्त्र की दृष्टि से यह कामग्रन्थि (गोनाड्स) का प्रभावक्षेत्र है। इसके द्वारा मनुष्य का अचेतन मन नियंत्रित होता है। योगविद्या के अनुसार उसे स्वाधिष्ठान चक कहा जाता है। इसके छः दल होते हैं। प्रत्येक दल एक-एक वत्ति का क्षेत्र है, जैसे-अवज्ञा, मूर्छा, प्रश्रय (सम्मान), अविश्वास, सर्वनाश और क्रूरता।
तेजस केन्द्र नाभि का स्थान है। इसका संबंध एडीतल (अधिवक्क) ग्रन्थि और वक्क (ग) के साथ है। योगविद्या के अनुसार इसके दस दल होते हैं। उनमें से प्रत्येक दल में एकएक वृत्ति विद्यमान है, जैसे-लज्जा, पिशुनता, ईर्ष्या, सुषुप्ति, विषाद, कषाय, तृष्णा, मोह, घणा और भय ।
प्रानन्द केन्द्र फुफ्फुस के नीचे हृदय का पार्श्ववर्ती स्थान है। यह थाइमस ग्रन्थि का प्रभावक्षेत्र है। हठयोग में इसे अनाहत-चक्र कहा जाता है। योगविद्या के अनुसार इसके बारह दल होते हैं। उनमें से प्रत्येक में एक-एक वृत्ति का वास माना गया है, जैसे-पाशा, चिन्ता, चेष्टा, ममता, दंभ, चंचलता, विवेक, अहंकार, लोलुपता, कपट, वितर्क और अनुपात ।
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