Book Title: Umravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Author(s): Suprabhakumari
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 1273
________________ स्व. सेठ श्रीमान, भेरुलालजी धर्मावत सेठ श्रीमान् भेरुलालजी धर्मावत का जन्म वीरप्रसविनी भूमि मेवाड़ की राजधानी उदयपुर में श्रीमान केसूलालजी सा. धर्मावत की पतिपरायणा धर्मपरायणा धर्मपत्नी सुश्री कस्तूरबाई की पावन कुक्षि से हुआ था। श्रीमान् केसूलालजी धर्मावत ने तीन विवाह किये । आपकी तीनों धर्मपत्नियों के नाम क्रम से-श्रीमती सोहनबाई, श्रीमती बाबूबाई एवं श्रीमती रतनबाई धर्मावत हैं। गौर वर्ण, भव्य ललाट, हंसता मुस्कराता चेहरा, शान्त तेजोदीप्त मुखमुद्रा, इन सभी ने मिलकर एक ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण किया था जिसे लोग दानवीर सेठ श्री भेरुलालजी धर्मावत के नाम से पहचानते थे। आप प्रकृति से सरल, स्वभाव से दयालु और हृदय से उदार थे । किसी भी प्राणी को कष्ट में देखकर आपका हृदय द्रवीभूत हो उठता था। अनाथ, गरीबों एवं विधवाओं को वे गुप्त रूप से सहायता किया करते थे। कब, किसे कितनी सहायता दी, यह उनके अतिरिक्त अन्य कोई नहीं जान सकता था। घर में कभी आपकी पत्नी रुपये इधर-उधर रख कर भूल जाती या अन्य कोई उठा लेता तो पूछने पर बोलते कि रुपये तो मैंने लिये, मुझे जरूरत थी। लो ये पुनः ले लो। अचानक जब रुपये मिल जाते तो कह देते-मैंने तो ऐसे ही कहा था क्योंकि मैंने सोचा इनका दिल दुखेगा। सांप, बिच्छु आदि कोई भी जीव सड़क पर भी दिखाई दे जाता तो उसे बचाने के लिये प्राप अपने हाथ से उठा कर एकान्त में ले जाकर छोड़ आते थे। उनका जीवन बड़ा ही लुभावना और सुहावना था। ऐसे ही लोगों के जीवन को लक्ष्य कर किसी शायर ने कहा है जिन्दगी ऐसी बना जिन्दा रहे दिलशाद तू । जब न रहे दुनिया में दुनिया को आये याद तू ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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