Book Title: Umravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Author(s): Suprabhakumari
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 1272
________________ श्री मितेशकुमार [ज. दि. ३१ जुलाई १९८४] मितेशकुमार के जीव के गर्भ में आने के पूर्व तक मेरी अध्यात्मक्षेत्र में कोई रुचि नहीं थी। जिस दिन बालक का जीव अपनी मां की कुक्षि में आया उसके दूसरे ही दिन मैं महासती श्री उमरावकुंवर जी म. सा. 'अर्चना के सम्पर्क में आया। इसके गर्भ में पाने के बाद इसकी माताजी अस्वस्थ रहने लगीं। स्वास्थ्य की विषमता को देखकर परिवार के लगभग सभी सदस्य इस बात के लिये सहमत थे कि गर्भ गिरा दिया जावे। यह बात पूजनीया म. सा. के समक्ष भी गई। पूजनीया महासतीजी ने फरमाया कि कभी-कभी ऐसा जीव बड़ा भाग्यवान होता है। अतः ऐसा नहीं किया जावे तो ठीक रहेगा। गर्भकाल दो माह का हो गया तब बालक की माताजी का आपरेशन हुआ। चिकित्सकों ने बालक को गर्भ से निकालकर देखा एवं पुनः प्रत्यारोपित कर दिया। फिर इसकी माताजी स्वस्थ हो गई और बालक का जन्म सामान्य रूप से ठीक समय पर हुआ। जब बालक की आयु एक वर्ष की थी तब पर्युषण पर्व की अवधि में आठ दिन तक इसने केवल दूध ही ग्रहण किया। दूध के अतिरिक्त कुछ भी नहीं लिया । यदि दूध के अतिरिक्त इसे कुछ खिलाते तो यह या तो खाता ही नहीं या थूक देता था। नवमें दिन से बालक ने अपनी दादी मां के हाथ से अन्य वस्तुएँ ग्रहण करना शुरू किया। बालक मितेशकुमार को कई बार कई बातों का पूर्व अनुमान हो जाता है। जैसे एक बार यह जिद करने लगा कि मुझे म. सा. के पास ले चलो किन्तु अपरिहार्य कारणों से कोई इसे ले जा नहीं सका । कुछ देर बाद घर के नीचे एक मुनिजी गोचरी लेने पधारे। हम उस भवन की तीसरी मंजिल पर रहते हैं। तब बालक कहने लगा कि दरवाजा खोलो म. सा. आये हैं। दरवाजा खोला तो एक मुनिजी म. सा. पधारे। गोचरी ले गये । बालक ने घर पर ही मांगलिक वचन सुने । उसके पश्चात् म. सा. के पास जाने की जिद नहीं की। -देवेन्द्रकुमार जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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