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अर्चनार्चन
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पंचम खण्ड / २२८
- पित्त पंगु ( गतिशील नहीं) है, कफ पंगु है, मल ( स्वेद-मूत्र - पुरीष) और धातुएं ( रस-रक्त-मांस-मेद - प्रत्थि - मज्जा - शुक्र) भी पंगु हैं । ये दोष धातु-मल वायु के द्वारा जहाँ ले जाए जाते हैं वहाँ बादल के समान चले जाते हैं । तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार वायु के द्वारा बादल गतिशील होते हैं उसी प्रकार शरीर में दोष-धातु-मल भी वायु के द्वारा गतिशील रहते हैं ।
इसी प्रकार और भी अनेक उद्धरण वायु की प्रधानता और महत्त्व के विषय में श्रायुर्वेदशास्त्र में प्राप्त होते हैं । शरीर को स्वस्थ और निरोग बनाये रखने के लिए वायु की साम्यावस्था अत्यन्त श्रावश्यक है । उसी प्रकार योगशास्त्र में प्राणायाम की दृष्टि से वायु का विशेष महत्त्व बतलाया गया है ।
योगशास्त्र में विशेषतः हठयोग में प्राणायाम से पूर्व षट्कर्म द्वारा शरीर का शोधन करना अत्यन्त प्रावश्यक बतलाया गया है । नेति, धौति, बस्ति, नौली, कपालभांति और त्राटक, इन यौगिक षट्कर्मों के द्वारा योगाचार्य कफादि दोषों को दूर करने का निर्देश देते हैं, ताकि इन कर्मों से शरीर की शुद्धि होकर शरीर प्राणायाम के अभ्यास के योग्य बन सके । आयुर्वेदशास्त्र में शरीर का शोधन करने के लिए "पंचकर्म" बतलाए गए हैं। जैसे वमन, विरेचन, बस्ति, शिरोविरेचन और रक्तमोक्षण । इन कर्मों से कफादि दोष शरीर के बाहर निकल जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है, जिससे वह स्वस्थ और निरोग बना रहता है । शरीर का शोधन रोगोपशन के लिए चिकित्सा के रूप में होता है, जिससे अनेक रोग समूल नष्ट हो जाते हैं। आयुर्वेदोक्त पंचकर्म के द्वारा दोषानुसार निम्न प्रकार से शुद्धि होती हैघमन से कफ दोष की विरेचन से पित्त दोष की, बस्ति से वायु दोष की, शिरोविरेचन से सिर में स्थित दोष की और रक्तमोक्षण से अशुद्ध रक्त का निर्हरण होता है । इस प्रकार पंचकर्म से दोषों का निर्हरण होकर शरीर पूर्ण रूपेण शुद्ध हो जाता है । योगशास्त्र में जो षट्कर्म बतलाए गए हैं उनके द्वारा शरीर की शुद्धि के साथ-साथ श्रनेक रोगों का शमन भी होता है । जैसे नेतिकर्म के विषय में कहा गया है
कपालशोधिनी चैव दिव्यदृष्टिप्रदायनी । जनूर्वजातरोगौघं नेतिराशु निर्हति च ॥
- हठयोग प्रदीपिका २ - ३०
-नेतिकर्म कपालका शोधन करने वाला, सिर में स्थित कफादि दोषों को दूर करने वाला और दिव्यदृष्टि प्रदान करने वाला होता है । वह उर्ध्वजत्रुगत ( गले से ऊपर अर्थात् शिर में होने वाले ) रोग समूह को शीघ्र नष्ट करता है ।
धौतिकर्म के द्वारा निम्न रोगों का नाश होता है
कासश्वास प्लीहकुष्ठं कफरोगाश्च विंशतिः । धौतिकर्म प्रभावेण प्रयान्त्येव न संशयः ॥
-हठयोग प्रदीपिका २-२५
धौतिकर्म के प्रभाव से कास, श्वास, प्लीहा सम्बन्धी विकार, कुष्ठरोग और बीस प्रकार के कफ रोगों का विनाश होता है-इसमें कोई संदेह नहीं है ।
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