Book Title: Umravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Author(s): Suprabhakumari
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 1260
________________ अर्थसहयोगी महानुभावों का संक्षिप्त परिचय उदारहृदय श्रीमान् जेठमलजी सा. चोरडिया, बेंगलोर एक उक्ति प्रसिद्ध है-"ज्ञानस्य फलं विरतिः"--ज्ञान का सुफल है-वैराग्य । वैसे ही एक सूक्ति है-"वित्तस्य फलं वितरण"-धन का सुफल है-दान ! पात्र में, योग्य कार्य में अर्थ व्यय करना धन का सदुपयोग है। नोखा (चांदावतों का) का चोरडिया परिवार इस सूक्ति का प्रादर्श उदाहरण है। मद्रास एवं बेंगलोर आदि क्षेत्रों में बसा, मरुधरा का यह दानवीर परिवार आज समाज-सेवा, शिक्षा, चिकित्सा, साहित्य-प्रसार, राष्ट्रीयसेवा आदि विभिन्न कार्यों में मुक्तहृदय से और मुक्तहाथ से उपार्जित लक्ष्मी का सदुपयोग करके यशोभागी बन रहा है । नागौर जिला तथा मेड़ता तहसील के अन्तर्गत चांदावतों का नोखा एक छोटा किन्तु सुरम्य ग्राम है। इस ग्राम में चोरडिया, बोथरा व ललवाणी परिवार रहते हैं । प्रायः सभी परिवार . व्यापार-कुशल हैं, सम्पन्न हैं । चोरडिया परिवार के घर इस ग्राम में अधिक हैं । चोरडिया परिवार के पूर्वजों में उदयचन्दजी पूर्वपुरुष हुए। उनके तीन पुत्र हुएश्री हरकचन्दजी, श्री राजमलजी व श्री चांदमलजी। श्री हरकचन्दजी के एक पुत्र थे श्री गणेशमलजी। __श्री गणेशमलजी जब छोटे थे, तभी उनके पिताश्री हरकचन्दजी का देहान्त हो गया। माता श्री रूपीबाई ने ही गणेशमलजी का पालन-पोषण व शिक्षण आदि कराकर उन्हें योग्य बनाया। श्री रूपीबाई बड़ी हिम्मतवाली बहादुर महिला थीं, विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने धर्म-ध्यान, तपस्या आदि के साथ पुत्र-पौत्रों का पालन व सुसंस्कार प्रदान करने में बड़ी निपुणता दिखाई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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