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योग : स्वरूप और साधना : एक विवेचन | १६३
'इच्छानिरोधो योगः'-इच्छात्रों का निरोध करना एक बहुत बड़ी साधना है। जैसे किसी साधक को स्वादिष्ट भोजन या ठंडा-ठंडा आइसक्रीम खाने की इच्छा हयी । सामने पड़े हुये पेय या स्वादयुक्त पदार्थों से मन को हटाकर जिह्वा का संवरण करना स्वादविजय है। इसी प्रकार शब्द से कर्ण को, सुगंधित द्रव्यों से नाक को और कोमल स्पर्श से शरीर की इच्छा पर संयम रखना इन्द्रियविजय है। यह एक मार्ग है। कषायविजय एक मार्ग
कषाय अर्थात् कलुषित वृत्तियों का प्रभाव । वह चार प्रकार का होता है-क्रोध, मान, माया और लोभ ।
क्रोधविजय-वैर का जन्म क्रोध से होता है। बहुत दिनों तक टिका क्रोध वैर और द्वेष बन जाता है। मान लो किसी ने प्रापको गाली दी और आपने उसको एक चांटा लगा दिया तो अापने क्रोध किया। किन्तु गाली देनेवाला गाली देकर भाग गया और कई दिनों के बाद आपको मिला। मिलते ही आपने बिना गाली सुने ही मार दिया तो यह वैर है। क्रोध के उदय को रोकना, फलहीन बना देना, आये हए क्रोध को द्रष्टा बनकर देखते रखना इत्यादि क्रोधविजय है।
मानविजय-मान के उदय का निरोध, आये हुए अहं का त्याग, सत्ता, संपत्ति, अधिकार का त्याग इत्यादि मानविजय है।
मायाविजय-सरलता का अभ्यास, ठगवत्ति का त्याग, बताना कुछ और देना कुछ का व्यवसाय बंद करना इत्यादि मायाविजय है।
लोभविजय-लोभ को जीतने का मार्ग है-जो पदार्थ उपलब्ध हैं उन्हीं में संतोष का अनुभव करना, मन की लालसा का निरोध करना, संग्रहवृत्ति का त्याग, यह लोभ विजय है। योगविजय एक मार्ग
योग अर्थात् मन, वचन, काया की प्रवृत्ति ।
मनोजय-मन शुभाशुभ विचारों की विकृति और प्रकृति से भरा हुआ है । मन निरंतर विकल्पों का जाल बुनता है और मकड़ी की तरह उसी में फंसता है। इसलिए मन पर विजय पाने के लिए साधक को अकुशल मन का निरोध, अस्थिर मन का स्थिरीकरण और शुभ मन को भी शुद्धता की ओर ले जाना आवश्यक है।
मन की विकृति शरीर में भी विकृति लाती है। श्वास की गति को भी अधिक या मंद कर देती है, रक्त की गति भी हाई या लो रूप धारण कर लेती है, हृदय को धड़कन भी बदल जाती है । ऐसे विकृत मन की गति को बदलना है। शब्द की गति से भी सूक्ष्म, बिजली, पानी, वायु की गति से भी अधिक गतिमान् यह मन है। बिजली एक सैकिण्ड में एक लाख, छियासी हजार मील जाती है किन्तु मन की गति का कोई मापतोल नहीं, वह तो अमाप है । अतः साधक हो इस अमाप मन की गति को माप सकता है। वह उसकी गति को रोकता नहीं, बदलता है। योगाभ्यास से उसे वश में किया जा सकता है। जैसे मदारी सर्प जैसे प्राणी को भी अपने वश में कर सकता है, मदोन्मत्त हाथी को महावत अंकुशित कर
आसमस्थ तम आत्मस्थ मन तब हो सके आश्वस्त जन
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