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पातंजल-योग और जैन-योग : एक तुलनात्मक विवेचन / २३
उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जैन और योग-दर्शन में योग के स्वरूप और उसके अंगों के कथन में शब्दों के हेर-फेर के साथ समानता है। योगदर्शन में जो योग की परम्परा उपलब्ध है वह पतंजलि की मौलिक देन नहीं है अर्थात पतंजलि योगसिद्धांत के आविष्कारक (प्रतिपादक) नहीं थे। यह सिद्धांत उन्हें परम्परा से प्राप्त हुअा था। लेकिन इस बात से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता है उन्होंने योग-सिद्धांत को परिमार्जित कर उसका विकास प्रचार कर उसे अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया है।
प्राध्यापक, प्राकृत, जैनशास्त्र एवं अहिंसा शोध संस्थान वैशाली (बिहार) २४४१२८
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आसमस्थ तम आत्मस्थ मम तब हो सके आश्वस्त जम
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