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चतुर्थ खण्ड / १८२
जैनागमों में अधिकांश उदाहरण पति के प्रति पत्नी के विनम्र, आज्ञाकारिणी होने के मिलते हैं । आशय यह है कि जैनयुगीन गृहपत्नी में स्वतंत्रता के साथ-साथ शालीनता भी आ गई थी। फिर भी पत्नी पर पति का प्रायः पूर्ण प्रभुत्व रहता था।
आगमकालीन समाज में पत्नी पति की निजी सम्पत्ति (परिग्रह) के रूप में मानी जाती . थी। यही कारण है कि पत्नी अपने पति के विरुद्ध आवाज नहीं उठा सकती थी। कोई पत्नी दुराचारिणी होती तो पति उसे मार भी डालता था। कभी-कभी तो बलात्कार का शिकार बनी हुई निर्दोष पत्नी को भी परपुरुष से दुषित होने के कारण मार डाला जाता था।२२
पति पर पत्नी का प्रभुत्व
परन्तु प्रागमों में पति पर पत्नी के प्रभुत्व की चर्चा भी की गई है। ऐसी पत्नी, अपने रूप, भोग, ज्ञाति, पुत्र, एवं शीलबल से युक्त होती थी।२३ तरुण पत्नी भी अपने वृद्ध पति पर प्रभुत्व करती थी। राजा प्रोक्काक ने अपनी युवा पत्नी के बहकावे में आकर प्रथम पत्नी के पुत्र-पुत्रियों को देश निकाला दे दिया था।२४ ऐसा प्रतीत होता है कि उस युग में पति पर पत्नी का प्रभुत्व होना पत्नी के लिए गौरवसूचक माना जाता था। उस युग में कई पत्नियाँ अपने पति को अनुकल बनाने या वश में करने के लिए विद्या, मन्त्र, चूर्ण, योग, औषध आदि का भी प्रयोग करती थीं।
दाम्पत्य-जीवन
दाम्पत्य-जीवन की सुदृढ़ता के लिए पति का अतिक्रमण न करना पत्नी के लिए आवश्यक होता था।२५ नकुलपिता को मरणशय्या पर व्याकूल देखकर उसकी पत्नी ने जब विश्वास दिलाया कि वह मरणोपरान्त भी उसका अतिक्रमण नहीं करेगी। फलतः नकुलपिता पत्नी से आश्वस्त होकर स्वस्थ हो गया।२६ कुलीन दम्पती के कार्यों को देख कर यही अनुमान होता था कि वे केवल शरीर से भिन्न किन्त पारिवारिक प्राचार-विचारों से अभिन्न थे। कभी-कभी पति-पत्नी में धार्मिक मतभेद के कारण मनमुटाव भी उत्पन्न हो जाता था।
२२. (क) मय्हं पजापति अतिचरति, तं पातेस्सामो ति । जानाही ति ।—पाचि० पृ० ३०१ (ख) तएणं छ गोट्ठिल्ला पुरिसा'बंधुमईए सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति"अज्जुणए छ इत्थिसत्तमे पुरिसे घाएमाणे · विहरइ ।
---अन्तकृद्० ६।१०४-१०६ २३. पंचहिं बलेहि समन्नागतो मातुगामो सामिकं अभिभुय्य वत्तति । -संयुत्त० ३।२१९ २४. भूतपुव्वं अम्बटू, राजा प्रोक्काको "जेट्टकुमारे रस्मा पब्बाजेसि । -दीघ० ११८० २५. (क) .."ठानानि दुल्लभानि अकतपुञ्जन मातुगामेन'"सामिक अभिभुय्य वत्तेय्यं ।
-संयुत्त० ३।२२१ (ख) नं अत्थियाइं मे अज्जाओ ! केइ कहिंचि चुण्णजोए वा मंतजोगे वा कम्मणजोए वा
हियउड्डावणे."गुलिया वा प्रोसही वा"इदा भवेज्जामि।-नायाधम्म.१।१४।१०४ २६. सिया खो पन ते,गहपति, एवमस्स-नकुलमाता गहपतानी ममच्चयेन अझ घरं गमिस्स
तीति, न खो पनेतं""एवं दृट्टव्वं ।-अंगुत्तर० ३।१७
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