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जैनदर्शन के आलोक में पुद्गलद्रव्य / ६१
३. वित्रसापरिणत-ऐसे पुदगल जो जीव की सहायता के बिना स्वयं परिणत हों। जैसे बादल, इन्द्रधनुष आदि ।
संश्लेष-बंध की तरह पुदगल का विभाजन पाँच प्रकार से होता है१. उत्कर-मूंग आदि की फली का टूटना । २. चूर्ण-गेहूँ आदि का प्राटा । ३. खंड-पत्थर के टुकड़े । ४. प्रतर-अभ्रक के दल ।
५. अनुतटिका-तालाब की दरारें।
' सामान्य रूप से पौद्गलिक स्वरूप की रूपरेखा पूर्वोक्त प्रकार की है। अब पुद्गल के गुण एवं परमाणु और स्कन्ध इन दो मुख्य भेदों के विषय में कुछ विशेष कथन करते हैं।
पुद्गल में प्राप्त पाँच वर्ण आदि बीस गुणों का संकेत ऊपर किया जा चुका है । ये गुण किसी स्थूल स्कन्ध में मिलेंगे, किन्तु परमाणु में एक वर्ण, एक रस, एक गंध और दो स्पर्श होते हैं । स्पर्शों की अपेक्षा स्कन्धों के दो भेद हो जाते हैं-चतु:स्पर्शी और अष्टस्पर्शी । सूक्ष्म से सूक्ष्म पुद्गल चतुःस्पर्शी स्कन्ध है। इसमें शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष ये चार स्पर्श मिलेंगे और परमाणु में उक्त चार में से भी कोई दो स्पर्श । मृदु, कठिन, गुरु, लघ इन चार स्पर्शों में से कोई भी स्पर्श अकेले परमाणु में नहीं मिलता है।
परमाणु परस्पर मिलकर स्कन्ध रूप धारण करते हैं। ये स्कन्ध कैसे बनते हैं, यह एक महत्त्वपूर्ण विषय है। क्योंकि परमाणु का निर्माण तो स्कन्ध के खंड-खंड होते जाने की चरम स्थिति में होता है, लेकिन स्कन्धनिर्माण की प्रक्रिया में अन्तर है। स्कन्धनिर्माण के लिये जैनदर्शन में एक प्रक्रिया बताई है, जो संक्षेप में इस प्रकार है
परमाण में जो स्निग्ध और रूक्ष में से एक तथा शीत और उष्ण में से एक स्पर्श बताये हैं, उनमें से एक परमाणु जब दूसरे परमाणु से संबद्ध होता है, तब उसमें परमाणु में विद्यमान वर्ण, गंध, रस तथा शीत या उष्ण स्पर्श का उपयोग नहीं होता, किन्तु स्निग्ध या रूक्ष स्पर्श का उपयोग होता है । इनके भी अनन्त प्रकार हैं। अतएव कौनसा परमाणु किस परमाणु के साथ संयोग कर सकता है, उसकी प्रक्रिया इस प्रकार है
१. स्निग्ध परमाणु का स्निग्ध परमाणु के साथ मेल होने पर स्कन्ध निर्मित होता है, किन्तु उन दोनों परमाणुओं की स्निग्धता में दो अंशों से अधिक अन्तर हो । इसी प्रकार रूक्षता के बारे में भी समझना चाहिये ।
२. स्निग्ध और रूक्ष परमाणुगों के मिलन से स्कन्धनिर्माण होता ही है, चाहे वे विषम अंश वाले हों या सम अंश वाले।
उक्त नियमों का अपवाद केवल इतना ही है कि एक गुण स्निग्धता और एक गुण रूक्षता नहीं होना चाहिये । अर्थात् जघन्य गुण वाले परमाणु का कभी संयोग नहीं होता।
जिस किसी भी स्कन्धनिर्माण की प्रक्रिया में उक्त नियम लागू पड़ते हों, वहाँ उन परमाणों से स्कन्ध बनते हैं । इस प्रकार दो, तीन, संख्यात, असंख्यात और अनन्त परमाणुओं का एक स्कन्ध बन सकता है।
धम्मो दीवो संसार समुद्र में धर्म ही दीय है।
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