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तुफानों से टक्कर लेने वाला आस्था का दीपक
अचानक बुद्ध ने देखा कि उपाश्रय के द्वार के समीप एक वृद्धा अपनी मुट्ठी में कुछ लिये हुए बड़ी पाशा और श्रद्धा के साथ खड़ी है। उसकी निगाहों में बड़ी दीनता है। बहुत लालसापूर्वक वह उनकी ओर एकटक देख रही है। यह देखते ही भगवान् बुद्ध उसी क्षण अपने आसन से उठकर उस वृद्धा के पास आए और बोले ----
"माँ, कुछ कहना चाहती हो?"
बुद्ध को अपने समीप देखकर वद्धा की आँखों से प्रानन्दाश्रु छलक पड़े। साथ ही वह अत्यन्त संकुचित होकर बहुत नम्रता के साथ धीमे शब्दों में बोली----
"भगवन् ! आज नगर के लोग दान दे रहे हैं, मेरी भी इच्छा तो बहुत कुछ देने की हो रही है, किन्तु मेरे पास तो केवल पाठ पाने ही आज की मजदूरी के हैं। क्या आप मेरी तुच्छ भेंट स्वीकार कर लेंगे?"
एकाएक बुद्ध ने पूछ लिया--"क्यों माँ ! तुमने अाज खाना खाया ?"
वृद्धा बोली-"इसकी पाप चिन्ता न करें प्रभो! मैं कल फिर कमाकर खा लूंगी। एक दिन न खाऊँ तो क्या फ़र्क पड़ेगा ? कृपा करके आप इन पैसों को लेने से इन्कार न करें।"
बुद्ध स्तब्ध रह गए पर साथ ही अपना हाथ बढ़ाकर बोले-- "लामो ! अपना दान मेरे हाथ पर रख दो। मैं स्वीकार करूगा, इन्कार नहीं।"
बुद्ध के हाथ पर पचास पैसे रखकर वृद्धा मानो निहाल हो गई और हाथ जोड़े हुए खड़ी रही। मंथर गति से चलते हुए बुद्ध पुन: अपने स्थान पर पाकर विराज गए । किन्तु नगर के धनिकों ने जब यह नजारा देखा तो खिन्न होकर पूछ लिया
"भगवन ! हमारे मकानों, ज़मीनों, मोहरों और रुपयों की अपेक्षा क्या इस बुढ़िया की अठन्नी आपको अधिक मूल्यवान् लगी कि आपने स्वयं अपने हाथ से ग्रहण की?"
बुद्ध हँस पड़े। बोले-"निस्संदेह आपकी दौलत की इस ढेरी से ये पचास पैसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं । कारण यह है कि आपने जितना धन दान में दिया है, उसकी अपेक्षा अपने खजाने में अहंकार की मात्रा उससे अधिक भर ली है और इस वृद्धा के प्रति ईर्ष्या
और द्वेष बढ़ाया है ब्याज में । किन्तु इस वृद्धा माँ ने नम्रता, दीनता और श्रद्धा की भावना से अपना पूरा धन, जो पाठ आना था, दे दिया है । यहाँ तक कि इस अठन्नी के अभाव में आज यह भूखी भी रहेगी। आप लोग ही बताइये कि भूखे रहकर भी पचास पैसे के रूप में अपना सम्पर्ण धन देना क्या अापके धन की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं है ? साथ ही यह भी ध्यान में रखिये कि दान की कसौटी पर यह वृद्धा मा ही खरी उतरी है, आप लोग नहीं।"
समाहिकामे समणे तवस्ती HOP. जो भ्रमण समाधि की कामना करता है, वही तपस्वी है।"
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