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तृतीय खण्ड
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"प्रेम, करुणा, सहानुभूति एवं अहिंसा की जितनी मात्रा बहिनों में होती है, उतनी पुरुषों में कदापि नहीं हो सकती, क्योंकि पुरुषों का दिमाग भले ही विकसित हो गया है, किन्तु नारी के हृदय की गहराई तक वह कदापि नहीं पहुंच सकता।"
वस्तुतः नारी स्नेह, सेवा तथा सहिष्णुता की मूर्ति होती है। वह निराश हृदयों में भी आशा का संचार करती हई संजीवनी साबित होती है। पं. जवाहरलाल नेहरू ने भी अपने भाषण में कहा था:
"हिन्द के जख्मी हृदयों का इलाज़ स्त्रियाँ ही कर सकती हैं। शरीर के घाव सूखाने में डॉक्टर मददगार होते हैं किन्तु हृदय के घाव मिटाकर उनमें साहस का संचार नारियों के अलावा कोई नहीं कर सकता।"
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इसलिये मैं अपनी बहिनों से कहना चाहती हूँ कि वे अपने पुरातन गौरव को न भूलें तथा अपनी शक्ति को पहचान कर अपना मार्ग स्वयं बनाएँ। वे पढ़े-लिखें तथा ज्ञान हासिल करके इतिहास को पलटें। ऐसा करके स्वयं समझे कि हमारे यहाँ प्राचीन समय में नारियों का जो उच्च और पवित्र स्थान था, वह सामान्यतया अन्यत्र कहीं भी नहीं पाया जाता था । गार्गी और मैत्रेयी जैसी अनेक ऐसी विदुषी नारियाँ आपके समान ही थीं, जिनसे ज्ञान प्राप्त करने के लिये अनेक जिज्ञासू पाया करते थे। झांसी की रानी जैसी वीरांगनाएँ भी थीं, जिन्होंने अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिये थे और जिनसे पुरुष भी काँपते थे। माता के रूप में भी वे ही नारियाँ थीं, जिन्होंने अपने पुत्रों को साहस, शौर्य एवं धर्म के क्षेत्र में धुरंधर बनाकर छोड़ा था। यथाशंकराचार्य को उनकी माता ने ज्ञान के शिखर पर पहुँचाया, वीर शिवाजी और प्रताप को उनकी माताओं ने शूरवीर तथा साहसी बनाया। इसी प्रकार धर्म के क्षेत्र में भी वे अग्रणी रहीं। रानी मदालसा ने अपने सात पुत्रों को महान त्यागी तथा स्वामी विवेकानन्द की माता ने उन्हें संत-महापुरुष के रूप में गढ़ा। जैन-धर्म में हमारी बहिनें सोलह सतियों का सदा स्मरण करती हैं, वे भी नारियाँ ही थीं।
इनके अलावा आज भी एसी नारियों की कमी नहीं है, जिन्होंने अपना जीवन आदर्श के रूप में अन्य देशों के समक्ष भी उपस्थित किया है। भारत जब गुलाम था तब अनेकों महिलाओं ने पुरुषों के कंधे से कंधा लगाकर देश को मुक्त कराने में उनका साथ दिया है। श्रीमती कस्तूरबा, कमला नेहरू आदि असंख्य नारियाँ जेल में गई और जब उससे बाहर रहीं तब भारतीयों के हृदयों में साहस का संचार करती रहीं। राजकुमारी अमृतकौर सरकार का एक स्तंभ बनी, सरोजनी नायडू गवर्नर के पद पर स्थापित हुई, विजयलक्ष्मी पंडित अमेरिका में भारत की राजदूत बनकर महान कार्य करती रही और इंदिरा गांधी ने वर्षों तक यहाँ का शासन-सूत्र अपने हाथों में रखा।
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