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चतुर्थ खण्ड/३०
और वह है अन्यथा-उपपन्नत्व अर्थात् अकिंचित्कर। प्रसिद्धादि उसी का विस्तार हैं । इस प्रकार अकलंक के द्वारा 'अकिंचित्कार' नाम के नये हेत्वाभास की परिकल्पना उनकी अन्यतम उपलब्धि है।
बालप्रयोगाभास
माणिक्यनन्दि ने आभासों का विचार करते हुए अनुमानाभास सन्दर्भ में एक 'बालप्रयोगाभास' नाम के नये अनुमानाभास की चर्चा प्रस्तुत की है। इस प्रयोगाभास का तात्पर्य यह है कि जिस मन्दप्रज्ञ को समझाने के लिए तीन अवयवों की आवश्यकता है उसके लिए दो ही अवयवों का प्रयोग करना, जिसे चार की आवश्यकता है उसे तीन और जिसे पांच की जरूरत है उसे चार का ही प्रयोग करना अथवा विपरीतक्रम से अवयवों का कथन करना बालप्रयोगाभास है और इस तरह वे चार (द्वि-अवयव प्रयोगाभास, त्रि-अवयव प्रयोगाभास, चतुरवयवप्रयोगाभास और विपरीतावयवप्रयोगाभास), सम्भव हैं । माणिक्यनन्दि से पूर्व इनका कथन दृष्टिगोचर नहीं होता। अत: इनके पुरस्कर्ता माणिक्यनन्दि प्रतीत होते हैं।
इस तरह जैनचिन्तकों की अनुमान-विषय में अनेक उपलब्धियां हैं । उनका अनुमानसम्बन्धी चिन्तन भारतीय तर्कशास्त्र के लिए कई नये तत्त्व प्रदान करता है।
सन्दर्भ एवं सन्दर्भ-स्थल १. बृहदारण्य., २।४१५ २. श्रोतव्यः श्रुतिवाक्येभ्यो मन्तव्यश्चोपपत्तिभिः ।
मत्वा च सततं ध्येय एते दर्शनहेतवः ।। ३. पूर्वी और पश्चिमी दर्शन, पृ. ७१ ४. जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार, पृ. २५९, वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी, १९६९ ५. वही।
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