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चतुर्थखण्ड / १०
इसी प्रकार ठाणांगसूत्र में वर्णित दस धर्मों में से ग्रामधर्म, नगरधर्म, राष्ट्रधर्म, कुलधर्म आदि का प्रत्यक्ष सम्बन्ध नीति से है। उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जैन नैतिक दृष्टिबिन्दु स्वहित के साथ-साथ लोकहित को भी लेकर चलता है। गृहस्थ जीवन में तो लोकनीति को स्वहित से अधिक ऊँचा स्थान प्राप्त हुआ है।
भगवान् के उपदेशों में निहित इसी समन्वयात्मक बिन्दु का प्रसारीकरण एवं पुष्पनपल्लवन बाद के प्राचार्यों द्वारा हुआ। प्राचार्य हरिभद्रकृत धर्मविन्दुप्रकरण २१ और आचार्य हेमचन्द्रकृत योगशास्त्र में मार्गानुसारी के जो ३५ बोल दिये गये हैं वे भी सद्गृहस्थ के नैतिक जीवन से सम्बन्धित हैं ।
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प्रवचनसारोद्वार में धावक के २१ गुणों में भी लगभग सभी गुण नीति से ही सम्बन्धित हैं।
इस प्रकार भगवान् महावीर द्वारा निर्धारित नीति सिद्धान्तों का लगातार विकास होता रहा और अब भी हो रहा है । यद्यपि नीति के सिद्धान्त वही हैं, किन्तु उनमें निरन्तर युगानुकूल परिमार्जन और परिष्कार होता रहा है, यह धारा वर्तमान युग तक चली पाई है।
महावीर युग की नैतिक समस्याएँ और भगवान् द्वारा समाधान
भगवान् महावीर का युग संघर्षों का युग था । उस समय श्राचार, दर्शन, नैतिकता, सामाजिक ऊँच-नीच की धारणाएँ, दास-दासी प्रथा आदि अनेक प्रकार की समस्याएँ थीं । सभी वर्ग उनमें भी समाज में उच्चताप्राप्त ब्राह्मणवर्ग अपने ही स्वार्थों में लीन था, मानवता पद-दलित हो रही थी, क्रूरता का बोलबाला था, नैतिकता को लोग भूल से गये थे। ऐसे कठिन समय में भगवान् महावीर ने उन समस्याओं को समझा, उन पर गहन चिन्तन किया और उचित समाधान दिया ।
१. नैतिकता के दो दृष्टिकोणों का उचित समाधान
उस समय ब्राह्मणों द्वारा प्रतिपादित हिंसक यश एक ओर चल रहे थे तो दूसरी ओर देह दण्ड रूप पंचाग्नि तप की परम्परा प्रचलित थी । यद्यपि भ. पार्श्वनाथ ने तापसपरम्परा के पाखंड को मिटाने का प्रयास किया किन्तु वे नि:शेष नहीं हुए थे।
२०. दसविहे धम्मे पण्णत्ते तंजा
(१) गामधम्मे, (२) नगरधम्मे, (३) दुधम्मे (४) पासंडधम्मे, (५) कुलधम्म्मे, (६) गणधम्मे, (७) संघधम्मे (८) सुवधम्मे, (९) चरितम्मे (१०) अथिकायधम्मे । -ठाणांग १०७६०
२१. प्राचार्य हरिभद्र-धर्मविन्दुप्रकरण १
२२. प्राचार्य हेमचन्द्र - योगशास्त्र ११४७-५६
२३. मार्गानुसारी के ३५ बोलों और श्रावक के २१ गुणों का नीतिपरक विवेचन अन्यत्र किया
गया है ।
२४. प्रवचनसारोद्वारद्वार २३९ गाथा १३५६-१३५८
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