________________
दहेजरूपी विषधर को निविष बनाओ!
भला ऐसी महान् शक्ति की अधिकारिणी नारियाँ क्या नहीं कर सकती ? वे चाहें तो प्रत्येक घर स्वर्ग बन सकता है और प्रत्येक बहू लक्ष्मी साबित हो सकती है। आवश्यकता है अपनी शक्ति का सम्यक उपयोग करने की तथा अपने श्रेष्ठ गुणों से संकीर्ण विचारधारा को नष्ट करके उदार तथा प्रेममय वातावरण बनाने की; बह को बेटी समझने की और दहेज के लालच को विषधर जन्तु समझ कर उससे दूर रहने की। 'शुभचन्द्राचार्य' ने लालच का तिरस्कार करते हुए सत्य ही कहा है:
"व्यामुह्यति मनः क्षिप्रं धनाशाव्यालविप्लुतम् ।"
अर्थात-धन-सम्पत्ति संबंधी तष्णा रूपी सर्पिणी द्वारा इसे जाने पर मन तत्काल ही विमोहित होकर भान भूल जाता है और अपना मूल स्वरूप खो देता है।
तो भाइयो, एवं बहिनो! अपने आज के वक्तव्य के अंत में मुझे केवल यही कहना है कि दहेज के लोभ-रूपी विषधर का विष आज हमारे देश की प्रत्येक जाति और समाज में व्याप्त हो चुका है और इसके प्रभाव के कारण ही जहाँ-तहाँ, अनेक होनहार, योग्य एवं सर्वगण-सम्पन्न मासम बालिकाएँ काल का ग्रास बनाई जा रही हैं। इस विष को आप सब मिलकर ही अनासक्ति अथवा त्याग-धर्म के सर्वोत्कृष्ट मंत्र से नष्ट कर सकते हैं। इस महा-भयंकर प्रथा के विरुद्ध प्रत्येक पुरुष और महिला को कटिबद्ध होकर क्रांति करनी चाहिये। क्योंकि प्रत्येक घर में बेटियाँ हैं और माता-पिता को उन्हें ब्याहना है। पर अगर हर घर के सदस्य पुत्रों के लिये दहेज न लेने की प्रतिज्ञा कर लें तो अपनी पुत्रियों को दहेज देने की समस्या ही उनके सामने नहीं आएगी।
..
विचारणीय बात तो यह है कि उन्हें कोई हानि भी नहीं होगी। अगर दहेज लेंगे नहीं तो देने से भी बच जाएँगे, अत: यह सौदा घाटे का नहीं है। उलटे लाभ यह होगा कि समाज में और घर-घर में सभी चैन की साँस लेंगे और स्नेह का साम्राज्य बना रहेगा। कोई भी कन्या दहेज के अभाव में कुमारी नहीं रहेगी और उसकी योग्यगा तथा गुण-सम्पन्नता के अनुसार योग्य वर तथा प्रेममय भावनाओं से परिपूर्ण घर मिल जाएगा। किसी भी प्रकार की विषम स्थिति का सामना उसे नहीं करना पड़ेगा।
साथ ही सबसे बड़ा लाभ परिवार, समाज और देश को यह होगा कि वे ही कन्याएँ जो ससुराल के नाम से भयभीत और बुझी-बुझी सी रहती हैं, अपने पुरातन गौरव को जगाकर अपनी अद्भुत प्रात्म-शक्ति का उपयोग करती हुई सच्ची धर्मपत्नी एवं भविष्य में ऐसी माता बनेंगी कि अपनी संतान को सुयोग्य, श्रेष्ठ तथा धर्मपरायण नागरिक बना सकें।
.. समाहिकामे समणे तवस्सी - जो श्रमण समाधि की कामना करता है, वही तपस्ती
101
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org