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सम्पूर्ण संस्कृतियों की लिरमौर-भारतीय संस्कृति
"भारतीयों के प्रति सेवा का कार्य कर देने वाला कोई भी व्यक्ति उनकी कृतज्ञता का सदा विश्वास कर सकता है; किन्तु उनका अपराध करने वाला उनके प्रतिशोध से बच भी नहीं सकता। यदि कोई कष्ट में पड़ा हो और सहायता मांगे तो वे अपने आपको भी भूलकर उसकी सहायता और रक्षा के लिये दौड़ पड़ेंगे पर अपना अपमान करने पर वे प्राणों की बाजी तक लगाकर कलंक मिटाएँगे । युद्ध में भागने वालों का तो वे पीछा नहीं करते, परंतु शरण में आए हों का वध भी नहीं करते, उलटे मान देते हैं। भारतीयों का प्राचार-विचार बड़ा सुन्दर और शांतिमय है।"
दस्तुत: चिरकाल से ही भारत-भूमि पर भारतीय संस्कृति की महानता और उज्ज्वलता की प्रतीक महान् प्रात्माएँ जन्म लेती रही हैं, जिनके कारण यह संस्कृति गौरवमय
और अमिट होती चली गई है। दसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि भारतीय संस्कृति ने ही यहाँ जन्म लेने वाले नर-नारियों के रक्त में घल-मिलकर उन्हें यशस्वी और इतिहास-प्रसिद्ध बना दिया है। किसी कवि ने यथार्थ ही कहा है:
गौतम, जाबालि, व्यास, महावीर, वाल्मीकि,
कपिल, कणाद, से महान ब्रह्मज्ञानी थे। अर्जुन से वीर अम्बरीष के समान भक्त,
हरिश्चन्द्र, कर्ण के समान यहाँ दानी थे। नारद से संत सती सीता-अनुसूया-सम,
सत्य-सदाचार-पूर्ण एक-एक प्रानी थे। ऐसा ही था भारत के भाग्य का अतीत काल,
___ सुयश यहाँ के देवलोक की कहानी थे । वास्तव में ही भारत-भूमि पर जितने ब्रह्मज्ञानी, ऋषि, महर्षि, दानी, परोपकारी, सदाचारी तथा वीर पुरुष हुए हैं उतने और किसी भी देश में नहीं हुए। 'बहरत्ना वसुंधरा' यह कथन भारत-भूमि के लिये सत्य है । इस धरती ने अनेकानेक नर-रत्नों को जन्म दिया है जो समग्र संसार के लिये आदर्श रूप साबित हुए हैं ! 'प्रोफ़ेसर लई रिनाड' ने यही कहा है:
"संसार के समस्त देशों में भारवर्ष के प्रति लोगों का प्रेम और आदर उसकी बौद्धिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक सम्पत्ति के कारण है।
—(4रिस विश्वविद्यालय) हमारी संस्कृति विविधरूपिणी एवं बहुमुखी रही है। यह मनुष्य के प्रत्येक क्षेत्र में उन्नत और विकसित हुई। यथा-गूढ़ ध्यान, चिंतन एवं तपादि के आध्यात्मिक क्षेत्र में, राजनीति और शासन व्यवस्था में, संगीत व नृत्यकला में, स्थापत्य तथा प्रतिमा-निर्माण में, साहित्य सृजन और चित्रकला में, सामाजिक रीति-नीति व शांति-मैत्री के प्रसारण आदि में,
"
समाहिकामे समणे तवस्सी " जो श्रमण समाधि की कामना करता है, वही तपस्वी
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