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बोझ दिमाग पर लादे हुए तर्क-वितर्कों में व्यर्थ समय नष्ट न करे, अन्यथा प्राप्त किया हुप्रा ज्ञान या विद्वत्ता निरर्थक साबित होगी। केवल ज्ञान और तर्क-वितर्कों के कारण मनुष्य मुक्ति के मार्ग पर चल नहीं पाता तथा चले बिना मंज़िल करीब नहीं आती ।
इबादत करो तो सही !
एक बार कुछ विद्वान् व्यक्ति किसी समारोह में शामिल होने के लिये एक नगर में गए। समारोह का आयोजन समाप्त हो गया और वे साथ ही लौट पड़े। चलते-चलते जब उन्हें थकावट महसूस होने लगी तो कुछ समय विश्राम के हेतु वे सब एक सघन वृक्ष के तले जा बैठे ।
तृतीय खण्ड
सभी विद्वान् थे अतः मौन कैसे रहते ? आपस में विचार-विमर्श करने लगे कि ईश्वर की स्तुति करते समय मनुष्य को क्या माँगना चाहिये ?
एक विद्वान् बोला - "भगवान् से प्रार्थना करते समय अन्न माँगना चाहिये, क्योंकि पन के बिना शरीर टिक नहीं सकता। कहावत है- "भूखे भजन न होहि गोपाला।" पहले व्यक्ति की बात सुनकर दूसरा विद्वान् बोला
" अरे प्रन्न क्या ऐसे ही पैदा हो जाएगा ? उसके लिये भुजाओं में बड़ी शक्ति चाहिये अतः अन्न की अपेक्षा प्रभु से शक्ति मांगना ज्यादा अच्छा है।"
दो विद्वानों की बातें सुनकर तीसरा बोल उठा
"वाह ! शक्ति होने पर भी अकल न हो तो अन्न क्या खाक पैदा होगा। शक्ति तो जंगल के राजा शेर में बहुत होती है, पर क्या वह फसल पैदा कर सकता है ? इसलिये सर्वप्रथम भगवान् ( से अक्ल या बुद्धि मांगनी चाहिये ।"
तीनों विद्वानों की बातें ध्यान से सुनने के बाद बड़ी गंभीरता से चौथे विद्वान् ने अपना विचार प्रकट किया
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"मैं तो समझता हूँ कि भगवान् से प्रार्थना करके शांति मांगनी चाहिये । शांति के अभाव में वातावरण प्रशांत हो जाता है तथा लोग आपस में लड़-झगड़कर वैरभाव मोल ले लेते हैं । उस वैर के कारण एक-दूसरे की खेती उजाड़ देते हैं या पकी पकाई फ़सलों में आग लगाकर उसे भस्म कर देते हैं । इसलिये भगवान् से शांति माँगना ही उचित है ।"
चौथे विद्वान् की बात सुनकर पाँचवें से चुप नहीं रहा गया। उसने कहा
"क्या खूब; श्रजी, शांति भी कोई माँगने की वस्तुत है ? माँगना ही है तो भगवान् की स्तुति करके प्रेम क्यों न मांगा जाय ? प्रेम होने पर शांति तो अपने ग्राप हो जाएगी ।
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