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________________ 3i ला दी £ 45 55F 15 स्व अ न अ र्च जा र्च न ● बोझ दिमाग पर लादे हुए तर्क-वितर्कों में व्यर्थ समय नष्ट न करे, अन्यथा प्राप्त किया हुप्रा ज्ञान या विद्वत्ता निरर्थक साबित होगी। केवल ज्ञान और तर्क-वितर्कों के कारण मनुष्य मुक्ति के मार्ग पर चल नहीं पाता तथा चले बिना मंज़िल करीब नहीं आती । इबादत करो तो सही ! एक बार कुछ विद्वान् व्यक्ति किसी समारोह में शामिल होने के लिये एक नगर में गए। समारोह का आयोजन समाप्त हो गया और वे साथ ही लौट पड़े। चलते-चलते जब उन्हें थकावट महसूस होने लगी तो कुछ समय विश्राम के हेतु वे सब एक सघन वृक्ष के तले जा बैठे । तृतीय खण्ड सभी विद्वान् थे अतः मौन कैसे रहते ? आपस में विचार-विमर्श करने लगे कि ईश्वर की स्तुति करते समय मनुष्य को क्या माँगना चाहिये ? एक विद्वान् बोला - "भगवान् से प्रार्थना करते समय अन्न माँगना चाहिये, क्योंकि पन के बिना शरीर टिक नहीं सकता। कहावत है- "भूखे भजन न होहि गोपाला।" पहले व्यक्ति की बात सुनकर दूसरा विद्वान् बोला " अरे प्रन्न क्या ऐसे ही पैदा हो जाएगा ? उसके लिये भुजाओं में बड़ी शक्ति चाहिये अतः अन्न की अपेक्षा प्रभु से शक्ति मांगना ज्यादा अच्छा है।" दो विद्वानों की बातें सुनकर तीसरा बोल उठा "वाह ! शक्ति होने पर भी अकल न हो तो अन्न क्या खाक पैदा होगा। शक्ति तो जंगल के राजा शेर में बहुत होती है, पर क्या वह फसल पैदा कर सकता है ? इसलिये सर्वप्रथम भगवान् ( से अक्ल या बुद्धि मांगनी चाहिये ।" तीनों विद्वानों की बातें ध्यान से सुनने के बाद बड़ी गंभीरता से चौथे विद्वान् ने अपना विचार प्रकट किया Jain Education International "मैं तो समझता हूँ कि भगवान् से प्रार्थना करके शांति मांगनी चाहिये । शांति के अभाव में वातावरण प्रशांत हो जाता है तथा लोग आपस में लड़-झगड़कर वैरभाव मोल ले लेते हैं । उस वैर के कारण एक-दूसरे की खेती उजाड़ देते हैं या पकी पकाई फ़सलों में आग लगाकर उसे भस्म कर देते हैं । इसलिये भगवान् से शांति माँगना ही उचित है ।" चौथे विद्वान् की बात सुनकर पाँचवें से चुप नहीं रहा गया। उसने कहा "क्या खूब; श्रजी, शांति भी कोई माँगने की वस्तुत है ? माँगना ही है तो भगवान् की स्तुति करके प्रेम क्यों न मांगा जाय ? प्रेम होने पर शांति तो अपने ग्राप हो जाएगी । 64 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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