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सत्साहित्य का अनुशीलन
"What you think, so you become." '-तुम जैसे विचार करोगे, वैसे ही बन जानोगे।'
उपर्युक्त कहावत साबित करती है कि जीवन को अगर उन्नत बनाना है तो उत्तम साहित्य का पठन और उस पर चिन्तन-मनन करके उसके निचोड़ को आत्मसात् करना पड़ेगा। इसका ज्वलंत उदाहरण स्वयं महात्मा गांधी थे।
एक बार गांधीजी जोन्सवर्ग से किसी अन्य नगर के लिए ट्रेन से जा रहे थे । सफर पूरे बारह घण्टे का था। उस समय संयोगवश उनका एक अंग्रेज मित्र मिल गया, उसने प्रसिद्ध दार्शनिक रस्किन की लिखी हुई एक पुस्तक 'अन्ट दिस लास्ट' नाम की एक प्रति उन्हें भेंट करते हुए कहा-'मित्र ! बहुत अच्छी पुस्तक है, आप अपने बारह घण्टे के सफर में इसे समाप्त कर लीजियेगा । वक्त भी आराम से कट जाएगा।'
गांधीजी ने उस पूस्तक को पढ़ा और उसका इतना गहरा प्रभाव उन पर पड़ा कि उन्होंने बैरिस्टरी छोड़कर सीधा-साधा ग्रामीण जीवन अपना लिया। सूट-बूट पहनना छोड़कर ऊँची धोती-अंगरखा और वह भी खादी का पहनने लगे। किसान और श्रमिक का सा जीवन व्यतीत करते हुए अपने मन को उन्नत एवं लगन को लोहवत बनाने लगे । अनेक बार अपरिचित व्यक्ति उनके वेश और श्रमिक जीवन को देखकर उन्हें पहचान ही नहीं पाते थे।
ति व्यक्ति उनसे मिलने पाया । गांधीजी की महानता के विषय में उसने बहुत कुछ सुन रखा था। उस समय गांधीजी कुए से जल लाने जा रहे थे । उस धनाढय की संयोगवश गांधीजी पर ही सर्वप्रथम नज़र पड़ी और उसने पूछा
"गांधीजी कहाँ हैं ! मुझे उनसे मिलना है।" खाली घड़ा हाथ में लिये गांधीजी ने कहा"पापको क्या काम है ? बताइये !" "मुझे उन्हीं से मिलना है, आप मुझे उनके पास ले चलिये न !! गांधीजी ने मुस्कराते हुए कहा--"अच्छा आप मेरे साथ चलिये।"
अागन्तुक साथ हो लिया । महात्माजी ने कुए पर जाकर पहले घड़ा भरा और फिर लौटकर अपने स्थान पर पा गए । पुनः उन्होंने पूछा
“कहिये क्या काम है आपको? क्या बात करनी है ?"
श्रीमंत ने कुछ झुंझलाते हुए फिर पूछा- “गांधीजी हैं कहाँ ? मुझे उन्हीं से बात करनी है।"
. गांधीजी हँसते हुए बोले-"भाई ! जिससे आप बात करना चाहते हैं, वह गांधी मैं ही हूँ, बताइये किस विषय पर बात करना चाहते हैं आप?" ..
समाहिकामे समणे तवस्सी - जो भ्रमण समाधि की कामना करता है, वही तपस्वी
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