________________
31
45 45 15.5555 no to
ना
स्व र्ण
अ
द
न
अर्चना र्च न
चित्रकार को उसका प्रश्न सुनकर मानो होश आया और उसने बताया-"भाई ! मैं वही चित्रकार हूँ जिसने तुम्हारा कुछ वर्ष पहले ही चित्र बनाया था । उस समय तुम कितने सुन्दर सौम्य, शान्त और सरल थे। अपनी चित्रशाला में पाजतक तुम्हारा वह सुन्दर चित्र देखकर मैं मुग्ध होता रहा हूँ, किन्तु माज तो तुम्हें उस समय से बिल्कुल विपरीत देख रहा हूँ तुम्हारी सुन्दरता, निष्कपटता और सौम्यता को ऐसी कुरूपता में किसने बदल दिया ?"
युवक उदास होकर बोला---"संगति ने ! हमारे छोटे से गांव में कोई संत महात्मा तो नहीं हैं जो मैं महापुरुष बनता । आवारा और उचक्के ही बसते हैं । इसलिये मैं भी वैसा बना और भाज जेलखाने में बैठा हूँ।"
बंधुयो ! यह बात कड़वी है मगर सत्य है कि समाज के बालक, युवक या बड़े व्यक्ति भी जैसी संगति प्राप्त करेंगे, वैसे ही बनेंगे। अगर साधु-साध्वी स्थान-स्थान पर जाकर मानव जीवन को उत्तम एवं सदाचरण युक्त बनाने का प्रयास करते रहें तो जन मानस श्रनंतिकता एवं पाशविकता से परे होकर कल्याण के मार्ग पर बढ़ सकता है। इसके अलावा संत भी ग्रात्म-तुष्टि का अनुभव करते हुए निःस्वार्थ एवं निरासक्तभाव से पूर्ण निराकुलतापूर्वक जहाँ इच्छा हो, साधना कर सकता है और जब मन हो, भटके हुए प्राणियों को सही मार्ग पर चला सकता है। अनेक प्रभावग्रस्त व्यक्ति जो दूर-दूर जाकर और वहाँ रहकर संत मुनिराजों के सत्संग का लाभ नहीं उठा पाते, वे महात्माओं के दर्शन और मिलन के लिये व्याकुल भी रहते हैं । ऐसे सरलचित्त मुमुक्षु की भावना सदा यही रहती है।
:
भोग उदास जोग जिन लीन्हो, छांड़ि परिग्रह भारा हो । इन्द्रिय- दमन वमन मद कीन्हो, विषय कषाय निवारा हो । na धौं मिलें मोहि श्री गुरुवर, करि अर्थात् भोगों का त्याग करके जिन्होंने
हैं
भव-दधि पारा हो ।
संयम अपना लिया है, सम्पूर्ण परिग्रह का भार उतार फेंका है, इन्द्रियों का दमन करते हुए अहंकार को नष्ट कर दिया है और सम्पूर्ण कषायों को जीत लिया है, ऐसे तरणतारण मुनिवर मुझे कब मिलेंगे जो भव-समुद्र से पार उतारेंगे ।
Jain Education International
तृतीय खण्ड
ऐसे निर्मल चित्त वाले प्राणियों को लाभ देना संत का अनिवार्य कर्तव्य है और वह तभी पूरा हो सकता है, जबकि वह भ्रमण करता रहे और उसमें आनन्द का अनुभव करे संत कबीर ने मस्ती में डूबे रहकर कितने सुन्दर भाव व्यक्त किये हैं
1
मन लागो मेरो यार फकीरी में ।
हाथ में कुडी बगल में सोटा, चारों दिशा जगीरी में । जो सुख पायो राम भजन में, सो सुख नाहिं अमीरी में ॥
52
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org