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द्वितीय खण्ड / २२८
केलीबाई ने कहा-'घबरानो मत ! महासतीजी श्री अर्चनाजी की कृपा से कोई हानि नहीं होगी, तुम पूज्य जयमलजी म. सा० तथा अर्चनाजी म. सा. का नाम जपते जाओ।' नाम का जाप करते ही मुझे जैसे पंख लग गये और मैं पलक झपकते ही मिल तक जा पहुँचा । मैं यह देखकर हैरान था कि थोड़ी देर पहले जो लपटें हमारे माल की ओर बढ़ रही थी, देखते ही देखते वे विपरीत दिशा में बदल गई। पूरी मिल जलकर राख हो गई, पर मेरा माल ज्यों का त्यों बच गया। मेरे पास गुरुणीजी सा० के प्रति श्रद्धासिक्त भावों को व्यक्त करने के लिए कोई शब्द नहीं हैं।
आपके मांगलिक के प्रभाव से ही मेरे पिता श्री नेमीचन्दजी बाफना और उनके साथ यात्रा कर रहे श्री बादलचन्दजी मेहता कार दुर्घटना से ऐसे बच गये जैसे कोई मौत के मुंह में जाकर लौट आये। जिस दिन वह जानकीनगर से मारवाड़ रवाना हो रहे थे, म० सा० ने कहा था 'क्या आप दो दिन बाद नहीं जा सकते ।' पिताजी ने कहा- 'बादलचन्दजी सा० को बहुत ही आवश्यक कार्य है, अतः जाना जरूरी है । अन्तत: म. सा० का मांगलिक सुनकर व उनके चरणों में वन्दना कर वे रवाना हो गये । लौटते समय कार एक बहत बडे पेड़ से टकरायी और ऊँची उछलकर बहत गहरे खड्ढे में गिर गयी, परन्तु कार में बैठे मेरे पिताजी, श्री बादलचन्दजी और ड्राइवर बच गये । मेरे पिताजी इसका श्रेय गुरुणीजी सा. के मांगलिक को ही देते हैं। उनका कहना है कि पवित्रजीवन व्यतीत करने वाले संतों के आशीर्वाद से विपत्ति टल जाती है। दुर्घटनाग्रस्त कार को देखकर लोग विस्मित थे कि इसमें सफर करने वाले कसे बच गये । हमने जब म० सा० श्री के चरणों में जाकर वन्दना की तो उन्होंने शान्त भाव से इतना ही कहा 'जब अपना उपादान सही होता है तो निमित्त भी अच्छा मिल जाता है।' महाराज श्री का वरदहस्त सदैव हमारे सिर पर बना रहे, यही हमारी मंगलकामना है ।
बंजर चले किसी 4 तड़फते हैं हम अमीर, सारे जहाँ का दर्द, हमारे जिगर में है।
सुना जैसा पाया 0 श्रीमती सुधा जैन, इन्दौर
__ मैं मद्रास से जानकीनगर अपने मायके पायी हुई थी। मैंने सहज रूप में सभी के हृदय में प्रतिष्ठित हो जाने वाले गुरुवर्या श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म० सा० के विषय में अनेक लोगों से सुना था। मेरे लड़के की एक आँख की पुतली जिसे काली किकी कहते हैं, वह बिल्कुल दिखाई नहीं देती थी। सिर्फ सफेद कोया ही नजर आता था। मद्रास और इन्दौर के बड़े-बड़े डाक्टरों से इलाज कराया परन्तु कोई लाभ
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