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अदृश्य आवाज पर जगी आस्था
[D] प्रकाशचन्द खवास, पीपाड़ (राजस्थान )
मुझे दिनांक ३०-३-८७ को खाचरौद में पूज्य महासतीजी श्री उमरावकुंवर जी म० स० 'अर्चना' के साक्षात् दर्शन का सौभाग्य मिला । इसके पीछे बहुत बड़ा निमित्त बना । वह यह है कि करीबन सत्तरह अठारह साल से मेरा कोर्ट केस चल रहा था । मैं बहुत परेशान था । पैसे से भी पूरी तरह बर्बाद हो चुका था। सुप्रीम कोर्ट से मुझे सजा सुना दी गई। वह रात मेरे लिये कयामत की रात की तरह बीती । पूरी रात नींद नहीं आई। सुबह लगभग साढे चार-पाँच बजे थोड़ी झपकी लगी और मैंने मेरी माँ को अपने सामने खड़े देखा, जिनका निधन चौदह वर्ष पूर्व हो चुका था । उन्होंने कहा “बेटा ! चिन्ता मत करो। खाचरौद जाकर महासती श्री उमराव कुंवरजी म० सा० 'अर्चना' का मंगलपाठ सुनो, सब ठीक हो जायेगा ।"
मैं उठते ही रवाना हो गया और पूछते-पूछते खाचरौद वृद्धाश्रम में महासती जी म० सा० की सेवा में पहुँच गया । दस-पन्द्रह भाई सेवा में खड़े थे। मैंने जाकर सारी बात बताई । महासतीजी म० ने अत्यन्त कृपाकर मुझे मंगलपाठ सुनाया । परम पूज्य श्राचार्यवर श्री जयमल्लजी म० के जाप का उपदेश दिया और साथ में माला भी दी । फलतः ऐसा शुभ संयोग बना, मेरी सजा माफ हो गई। मेरे पास शब्द नहीं हैं, जिन द्वारा मैं अपने कृतज्ञभाव व्यक्त कर सकूं ।
महासतीजी म० वास्तव में अद्भुत शक्तिपुंज हैं ।
सुगन्ध
बताने की जरूरत नहीं, यह तो उसकी सहज प्रवृत्ति है. दिव्यज्योति : अर्चनाजी
→ अमृतलाल जैन, चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट, उज्जैन
गुलाब को अपनी
किसी महापुरुष के दर्शन और सत्संग का योग वास्तव में पूर्वजन्मों के पुण्यों के प्रताप से ही संभव है। ऐसा एक पुनीत योग मेरे जीवन में जिस अध्यात्मयोगिनी और विदुषी जैन महासतीजी का आया, वह मेरे लिए श्रद्धा का केन्द्र बन गया है । आज भी कुछ ऐसे क्षण हैं जो बरबस याद आते ही रहते हैं ।
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